पर्यावरण असंतुलन – मानव हस्तक्षेप का परिणाम

                              पर्यावरण असंतुलन


  बाढ़, सूखा, भूकम्प, ज्वालामुखी और आंधी, तूफान जैसी प्रराकृतिक आपदाएं क्ययो आती है कभी आपने सोचा है? 


ऐसी अनेक आपदाएं पर्यावरण में मानव के हस्तक्षेप के कारण आ रही हैं। मनुष्य जैसे जैसे विकास करता गया उसकी आवश्यकताएं बढ़ती गई। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अधिक से अधिक दोहन करने लगा । खेती योग्य भूमि पर ऊचीऊंची-अट्टालिकाएं खड़ी हो गई। शहरीकरण के विस्तार में पेड़ों की अन्धाधुंध कटाई हुई। कल कारखानों से निकले कचरों ने नदियों के जल को शुद्ध नहीं रहने दिया।


भूमि पर बढ़ता दबाव


स्वतन्त्रता के बाद हमारी जनसंख्या लगभग तीन गुना बढ़ गई है। कितनी ट्रेने चले , कितने ही मार्ग बनाए जाए, कहीं भी भीड़ कम होती नहीं दिखाई दे रही है क्यो कि हमारी जनसंख्या उपलब्ध संसाधनों के अनुपात में तीन गुना बढ़ गई है। महानगरों या गांवों में रहने वाला कोई व्यक्ति इस स्थिति से शायद ही अपरिचित होगा।
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वर्ष 2011की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 19 करोड़ से अधिक है जो कि पूरे देश की जनसंख्या का लगभग 16.49% है।
जनसंख्या का सबसे अधिक दबाव भूमि पर पड़ रहा है। इससे कई समस्या पैदा हो रही हैं-

  • आवास एवं उद्योगों हेतु भूमि उपलब्ध कराने के लिए जंगलों की कटाई ।खेती योग्य भूमि का घटना।
  • सड़क, रेल, वायु यातायात व्यवस्था के लिए भूमि की निरंतर बढ़ती मांग।
  • पर्यटन एवं मनोरंजन की सुविधाएं विकसित करने के लिए भूमि की मांग



ऊर्जा : जीवन के लिए आवश्यक


ऊर्जा हमें अलग अलग रूपों में उपलब्ध होती है । यह सूर्य के प्रकाश, बढ़ते जल तथा वायु, भोज्य पदार्थों और पेड़ पौधों में प्राकृतिक रूप से संचित होती है। ऊर्जा ही हमें अपने दैनिक, सामाजिक कार्य करने तथा हमारी सुख – सुविधाओं का उपयोग करती है।
ईंधन हमें भोजन पकाने , वाहनों को चलाने , विधुत उत्पन्न करने तथा कारखानों में मशीनों को चलाने के लिए ऊर्जा प्रदान करते हैं। गोबर के कंडे , लकड़ी, कोयला, डीजल, पेट्रोल वर्जन मिट्टी के तेल हमारे द्वारा उपयोग किए जाने वाले कुछ मुख्य ईधन है।ईधन  से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए उन्हें जलाया जाता है। जलने की क्रिया में ईंधन कार्बन डाइऑक्साइड, जल वाष्प, कुछ अन्य गैसे तथा ठोस कण मुक्त करते हैं।य  हमें धुएं के रूप में दिखाई देते हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में गोबर , पुआल, और झाड़ियों को सुखाकर ईंधन के रूप में प्रयोग करते हैं। इन्हें जलाने से धुआं अधिक मात्रा में निकलता है।यह धुआं पर्यावरण को प्रदूषित करता है। कोयले के जलने से होने वाला वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या है। पेट्रोलियम तेल का उपयोग वाहनों और मशीनों में किया जाता है। इसके दहन से उत्पन्न कार्बन डाई ऑक्साइड,कार्बन मोनोऑक्साइड, तथा सल्फर डाइऑक्साइड आदि गैसों के कारण वायु प्रदूषण होता है। सीसा मिश्रित पेट्रोल जलाने से इसके अति सूक्ष्म कण वायु में मिल जाते हैं, जो सांस के साथ हमारे शरीर के अन्दर प्रवेश करते हैं। इससे हमारा स्नायु तंत्र प्रभावित होता है।

नोट

        मथुरा रिफाइनरी तेल शोधक कारखाने से उत्सर्जित सल्फर डाई ऑक्साइड गैस के कारण ताजमहल पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है कुछ विशेष पारिस्थियों में यह गैस सल्फयूरिक अम्ल में परिवर्तित हो जाती है जो कि संगमरमर का क्षरण कर सकती है। आगरा स्थित विभिन्न उद्योगों जैसे फाउंड्री और जनरेटर सेटों से निकलने वाली सल्फरडाई आक्साइड से भी ताज महल को खतरा है 

ग्रामीण क्षेत्रों के लिए गोबर पर आधारित गोबर गैस संयंत्र का उपयोग करने से अधिक ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। यह प्रर्यावरण की दृष्टि से उत्तम हैं। इससे प्राप्त मिश्रण का प्रयोग खाद के रूप में किया जाता है।इस खाद से खेतों की उर्वरा शक्ति, जलधारण क्षमता, तथा कार्बन, नाइट्रोजन अनुपात बडताब है जिससे खेतों में पैदावार अच्छी होती है।

जल ही जीवन है
 जल के बिना जीवन की परिकल्पना नहीं की जा सकती है। खाद्यान्न उत्पादन, औद्योगिक विकास, ऊर्जा तथा पेयजल के अलावा अपशिष्ट पदार्थों के निस्तारण के लिए जल की आवश्यकता पड़ती है। जल से बिजली का भी उत्पादन किया जाता है।
हमारे उपयोग के लिए जल कुएं तथा हैण्डपम्प के अतिरिक्त हम तालावो , झरनों और नदियों से जल प्राप्त करते हैं।
जल का प्रमुख स्रोत बर्षा है।

समुंद्र के पानी का इस्तेमाल कैसे करें-
समुंद्र का पानी खारा होता है। इसलिए यह पीने के काम में नहीं लाया जाता है। भोजन में हम नमक का प्रयोग करते हैं यह समुद्र के पानी से बनाया जाता है।

नदियों की शुद्धता और इनके प्रदूषण का कारण 
हमारे देश की कुछ नदियों में वर्ष भर जल का प्रवाह बना रहता है। यह जल पहाड़ों पर जमी बर्फ के पिघलने से आता है। हमारे प्रदेश में गंगा, यमुना, गोमती, सरयू और घाघरा प्रमुख नदियां हैं। गंगा को स्वच्छ तथा निर्मल नदी के रूप में जाना जाता है, परन्तु आज गंगा संसार की उन सात प्नरदूसित नदियों  में से हैं जो पूर्णतः प्रदूषित हो चुकी है। गंगा के अलावा यमुना का जल भी प्रदूषित हो गया है।इन नदियों के जल प्रदूषण का कारण भी हम सभी हैं।

नोट-

  • ई-कोलाई एक अत्यंत सूक्ष्म जीवाणु है जिससे आंत्र – शोध या पेेेचििश  होती है।
  • पानी में एक सीमा तक इसकी संख्या स्वास्थय के लिए हानिकारक नहीं होती है परन्तु एक निश्चित सीमा से अधिक संख्या में इनकी उपस्थिति स्वास्थय के लिए हानिकारक होती है।
  • वर्तमान में हमारी अनेक नदियों तथा अन्य जलस्त्रोतों में रोगाणुओं की संख्या निर्धारित सीमा से कहीं अधिक पाई गई है जिससे जनसामान्य के स्वास्थ्य का संकट उत्पन्न हो रहा है।
  • मानव हस्तक्षेप के कारण गंगोत्री हिमखंड प्रति बर्ष 25-30 मीटर की गति से सिकुड़ रहा है यदि यही स्थिति बनी रही तो कुछ वर्षों में हिम-ग्लेशियर पूर्णतः सूख जाएगा । इससे गंगा सूखने की कगार पर  आ जाएगी।

समुंद्र एक बड़ा भण्डार
समुंद्र जल का बड़ा भण्डार है। इसमें विभिन्न नदियों का जल लगातार मिलता रहता है। समुंद्र प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण प्रदूषित नदियां हैं।
अपशिष्टों, कीटनाशकों, हाइड्रोकार्बन तथा विषाक्त पदार्थ समुंद्र में मिल जाने के कारण समुद्र प्रदूषित हो रहा है ये प्रदूषण मानव द्वारा उत्पन्न किए जा रहे हैं।

कभी कभी पेट्रोलियम पदार्थों को ले जा रहे टैंकरों अथवा समुंदरी जहाजों के दुर्घटना ग्रस्त हो जाने पर उनमें भंडारित पर्दाथ समुंद्र में मिल जाते हैं। समचसमुं तल के नीचे स्थित खनिज तेल के निष्काशन की प्रक्रिया में भी कभी कभी पेट्रोलियम न समुंद्र में मिल जाता हैं।इन सब तैलीय अपशिष्टों के कारण समुद्र में तेल की पतली सतह फैल जाती है। यह सतह और ऊर्जा का जल में प्रवेश तथा गैसों के आदान-प्रदान में बांधा उत्पन्न करती है।
मछली तथा अन्य जीवों का  स्त्रोत  होने के साथ साथ समुद्र अनेक खनिजों एवं लवणों के स्रोत हैं।इन साधारण नमक तथा आयोडीन समुंद्र से ही प्राप्त करते हैं।


हम वनो के रक्षक
वन हवा को शुद्ध रखने में सहायक है। इनसे हमें जलाने हेतु लकड़ी , फर्नीचर तथा अन्य उपयोगों के लिए लकड़ी भी प्राप्त होती है। वनों से हमें विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चा माल भी मिलता है । इसके अतिरिक्त वनों से अनेक जड़ी बूटी भी प्राप्त होती हैं।वन्य जीवों के लिए वास स्थान का कार्य वन करते हैं ।वन हमारे पूर्वजों के महत्व से भलीभांति परिचित थे । संभवतः इसलिए वह अनेक वृक्षों की पूजा किया करते थे।आज भी कुछ लोगों को वृक्षों की पूजा करते देखा जा सकता है। अनेक आदिवासी प्राजातियों क जीविकोपार्जन का प्रमुख स्रोत वन ही हैं।

हम वनों के भक्षक 
जनसंख्या बढ़ने के कारण मनुष्य पेड़ों को काट कर घर तथा मार्ग निर्माण व ईंधन के रूप में उपयोग करने लगा । इससे वन नष्ट होते जा रहे हैं। प्रर्यावरण सम्बन्धी अनेक सम्सयाएं उत्पन्न हो गई है।

उदाहरण के लिए वन वन भूमि के कटाव को रोकते हैं परन्तु वनों की अन्धाधुंध कटाई के कारण भूमि की उपजाऊ शक्ति निरन्तर कम होती जा रही है।
वनों में निवाश करने वाले दुर्लभ पशु-पक्षीयों तथा वनस्पति की प्रजातियां विलुप्त होती जा रही है। इसका एक उदाहरण भारतीय चीता है जो अब विलुप्त हो गया है वनों के कम होने से जंगली पशु गावों में भी घुस आते हैं जो बच्चों व जानवरों पर हमला भी कर रहे हैं।

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