भारत : कृषि एवं सिंचाई
कृषि
कृषि से तात्पर्य केवल खेती या फसलें उत्पन्न करना ही नहीं होता है। कृषि के अन्र्तगत पशुपालन, मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन , रेशम कीट पालन, बागबानी और मत्स्यपालन भी आता है।
मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जिन पौधों को उगाता है, उन्हें फसल कहते हैं। पशुपालन के अन्र्तगत वे पशु और पक्षी भी शामिल हैं, जिन्हें मनुष्य अपने उपयोग के लिए पालता है। वानिकी और मंत्रालयपालन, को कृषि के अन्र्तगत रखा जाता है
पुराने समय से लेकर अब तक खेती करने के तरीकों में बहुत अन्तर आया है । इसे जानने के लिए आप अपने घर या गांव के बड़े बुजुर्गो से चर्चा कीजिए कि उनके खेती करने का तरीका क्या था ? अब आप के गांव के लोग खेती कैसे करते हैं ? पहले गांव में खेत जोतने के लिए बैल का प्रयोग किया जाता था। किन्तु अब आप इस कार्य के लिए टैक्टर का प्रयोग देखते होंगे। ट्रैक्टर कृषि का आधुनिक उपकरण है।
हमारा भारत एक कृषि प्रधान देश है। हमारे देश में लगभग 55% लोग कृषि पर निर्भर हैं। देश की कुल राष्ट्रीय आय का लगभग 17 % कृषि से प्राप्त होता है। विभिन्न प्रकार की जलवायु तथा विविध मिट्टियों के कारण देश में लगभग सभी प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं।
देश में पैदा होने वाली फसलों को तीन वर्गों में रखा जाता है।
खाद्यान्न फसलें - इसमें गेहूं, चावल, जौ, चना, मटर, दालें, ज्वार,बाजराा, आदि ।
नकदी फसलें - गन्ना, कपास, जूट, तिलहन, तम्बाकू आदि।
पेय एवं बगानी फसलें - चाय, कहवा, रबड़, गर्म मसाले , आदि ।
कृषि फसलों के प्रकार
1. रबी की फसलें
समय- जाडे के प्रारंभ में बोना और ग्रीष्म ऋतु के आगमन पर काटना।
उपजें- गेहूं, चना, जौ, मटर, सरसों, अलसी, एवं राई आदि।
2. खरीफ की फसलें
समय- वर्षा ऋतु के प्रारंभ में बोना व शीत ऋतु के प्रारंभ में काटना।
उपजें- धान, मक्का, ज्वार, मूंग, जूट, मूंगफली आदि।
3. जायद की फसलें
समय- मार्च अप्रैल में बोना उपज तैयार हो जाने पर प्राप्त करना।
उपजें- तरबूज, खरबूज, ककड़ी, सब्जियां आदि।
आइए, अपने भारत देश की मुख्य उपजों (चावल, गेहूं, दाल, गन्ना, चाय, काफी, कपास, जूट, आदि) के विषय में जानें -
चावल की खेती
कृषि
कृषि से तात्पर्य केवल खेती या फसलें उत्पन्न करना ही नहीं होता है। कृषि के अन्र्तगत पशुपालन, मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन , रेशम कीट पालन, बागबानी और मत्स्यपालन भी आता है।
मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जिन पौधों को उगाता है, उन्हें फसल कहते हैं। पशुपालन के अन्र्तगत वे पशु और पक्षी भी शामिल हैं, जिन्हें मनुष्य अपने उपयोग के लिए पालता है। वानिकी और मंत्रालयपालन, को कृषि के अन्र्तगत रखा जाता है
पुराने समय से लेकर अब तक खेती करने के तरीकों में बहुत अन्तर आया है । इसे जानने के लिए आप अपने घर या गांव के बड़े बुजुर्गो से चर्चा कीजिए कि उनके खेती करने का तरीका क्या था ? अब आप के गांव के लोग खेती कैसे करते हैं ? पहले गांव में खेत जोतने के लिए बैल का प्रयोग किया जाता था। किन्तु अब आप इस कार्य के लिए टैक्टर का प्रयोग देखते होंगे। ट्रैक्टर कृषि का आधुनिक उपकरण है।
ऐसी खेती या पैदावार जिससे दैनिक जीवन की आवश्यकताएं पूरी होती हैं , उसे निर्वाह कृषि कहा जाता है। जिस कृषि का मुख्य उद्देश्य बाजार में फसल बेचना ही उसे व्यापारिक कृषि कहा जाता है। इसे फसल विशिष्टीकरण भी कहते हैं।
हमारा भारत एक कृषि प्रधान देश है। हमारे देश में लगभग 55% लोग कृषि पर निर्भर हैं। देश की कुल राष्ट्रीय आय का लगभग 17 % कृषि से प्राप्त होता है। विभिन्न प्रकार की जलवायु तथा विविध मिट्टियों के कारण देश में लगभग सभी प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं।
देश में पैदा होने वाली फसलों को तीन वर्गों में रखा जाता है।
खाद्यान्न फसलें - इसमें गेहूं, चावल, जौ, चना, मटर, दालें, ज्वार,बाजराा, आदि ।
नकदी फसलें - गन्ना, कपास, जूट, तिलहन, तम्बाकू आदि।
पेय एवं बगानी फसलें - चाय, कहवा, रबड़, गर्म मसाले , आदि ।
कृषि फसलों के प्रकार
1. रबी की फसलें
समय- जाडे के प्रारंभ में बोना और ग्रीष्म ऋतु के आगमन पर काटना।
उपजें- गेहूं, चना, जौ, मटर, सरसों, अलसी, एवं राई आदि।
2. खरीफ की फसलें
समय- वर्षा ऋतु के प्रारंभ में बोना व शीत ऋतु के प्रारंभ में काटना।
उपजें- धान, मक्का, ज्वार, मूंग, जूट, मूंगफली आदि।
3. जायद की फसलें
समय- मार्च अप्रैल में बोना उपज तैयार हो जाने पर प्राप्त करना।
उपजें- तरबूज, खरबूज, ककड़ी, सब्जियां आदि।
आइए, अपने भारत देश की मुख्य उपजों (चावल, गेहूं, दाल, गन्ना, चाय, काफी, कपास, जूट, आदि) के विषय में जानें -
चावल की खेती
प्रमुख उत्पादक क्षेत्र
पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, असोम, बिहार, झारखंड, ओडिशा, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, मेघालय, केरल, त्रिपुरा, मणिपुर, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब इत्यादि प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं।
आवश्यक दशाएं
अधिक गर्मी, अधिक पानी, और उपजाऊ चिकनी मिट्टी चाहिए।
भारत विश्व का लगभग 22 प्रतिशत चावल का उत्पादन करता है। चीन के बाद भारत का विश्व में चावल उत्पादन में दूसरा स्थान है।
गेहूं की खेती
प्रमुख उत्पादक क्षेत्र
उत्तर प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र।
आवश्यक दशाएं
दोमट मिट्टी, समान्य वर्षा इसलिए सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। पकते समय गर्मी चाहिए।
विश्व में गेहूं उत्पादक देशों में भारत का चीन के बाद दूसरा स्थान है। भारत में उत्तर प्रदेश राज्य का गेहूं उत्पादन में प्रथम स्थान है।
दालें
प्रमुख उत्पादक क्षेत्र
मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, आंध्रप्रदेश इत्यादि राज्य मुख्य हैं।
आवश्यक दशाएं
प्रत्येक प्रकार की मिट्टी में अच्छी होती हैं। सामान्य वर्षा और कम मेहनत की आवाज होती है। अन्य फसलों के लिए मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाती है।
गन्ना
प्रमुख उत्पादक क्षेत्र
उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा, बिहार, झारखंड, गुजरात।
आवश्यक दशाएं
उपजाऊ मिट्टी और गर्म नम जलवायु।
भारत में सर्वाधिक गन्ने का उत्पादन करने वाला राज्य उत्तर प्रदेश है।
चाय
प्रमुख उत्पादक देश
असम, पश्चिम बंगाल, मेघालय, अरूणांचल प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, केरल के पहाड़ी ढालों पर चाय की खेती की जाती है।
आवश्यक दशाएं
अधिक गर्मी और वर्षा , पहाड़ी ढाल जिस पर पानी न रुके अन्तथा जड़ें गल जाती हैं।
चाय की संक्षिप्त कहानी-
विश्व में चीन के लोगों ने सबसे पहले चाय पीनी शुरू की थी।शुर शुरू में यह आदत केवल कुछ लोगों तक सीमित थी। प्रारंभ में इसे औषधीय पेय भी समझा जाता था । उपनिवेशवादी अंग्रेजों ने वर्ष 1829 ई. में उत्तर पूर्व के वनों में असोम चाय की खोज कर ली थी। चाय की बड़े पैमाने पर खेती को चाय बागान या चाय बागाती कृषि कहते हैं।
कहवा या काफी भी चाय की तरह एक पेय पदार्थ है।
कपास
प्रमुख उत्पादक क्षेत्र
महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु , उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा।
आवश्यक दशाएं
काली मिट्टी, गर्म व नम जलवायु 100 सेमी वर्षा अथवा सिंचाई का उचित प्रबन्धन, उपजाऊ मिट्टी।
जूट
प्रमुख उत्पादक क्षेत्र
असोम, पश्चिम बंगाल, मेघालय, बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा।
आवश्यक दशाएं
अधिक वर्षा, गर्म व नम जलवायु।
नोट-
राष्ट्रीय आय- राष्ट्रीय आय किसी राष्ट्र में एक वर्ष के दौरान उत्पादित वस्तुओं व सेवाओं का सकल (कुल) मूल्य होती है। यह किसी भी देश के विकास के संयंत्र को बताती है।
नकदी फसलें- दूसरों के उपयोग अर्थात विक्रय के लिए उत्पादित फसल जिससे नकद आय प्राप्ति होती हैं। इसका उपभोग कृषक स्वयं नहीं करता ।
राष्ट्रीय कृषि नीति
भारत सरकार द्वारा घोषित राष्ट्रीय कृषि नीति का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में उच्च वृद्धि दर प्राप्त करना है । ऐसे विकास को प्रोन्नत करना, जिसमें हमारे संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग हो । हमारी भूमि, जल और जैव विविधता को सुरक्षित रखा जा सके । किसानों को मूल्य संरक्षण प्रदान करना , कृषि क्षेत्र में फसलों के बीमाकरण, जैव प्रौद्योगिकी पर बल देना एवं कृषि कार्यों के लिए किसानों को ऋण सुनिश्चित करना इस नीति का प्रमुख लक्ष्य है।
कृषकों को अपने व्यवसाय से संबंधित कठिनाइयों से निपटने के लिए सरकार ने निम्नलिखित व्यवस्थाएं की गई है-
- पैदावार की उचित दर प्रदान करने के लिए अनाजों, फसलों की खरीद की न्यूनतम दर निश्चित की जाती है।
- खरीद बेच हेतु मण्डियों और विपणन केन्द्रों की स्थापना की गई है।
- आने जाने व फसलों की ढुलाई के लिए छोटे छोटे मार्गों को बनाया गया है।
- खाद्य संरक्षण के लिए गोदाम , शीत घरों की स्थापना की है।
- किसान क्रेडिट कार्ड बनाकर किसानों को ऋण उपलब्ध कराना।
- विभिन्न प्रकार की फसल बीमा योजनाओं का संचालन किया जाना।
सिंचाई
कृषि के लिए सिंचाई बहुत आवश्यक है क्योंकि भारत में वर्षा की मात्रा और समय अनिश्चित और असमान हैं। साल में अच्छी फसल और एक से अधिक फसलें उगाने के लिए सिंचाई की आवश्यकता होती है। कुएं और तालाब सिंचाई के प्राचीन साधन हैं । दक्षिण के पठारी भागों में तालाब अधिक है आजकल अधिक मात्रा में पानी प्राप्त करने के लिए नलकूप बनाए जाते हैं।सरकार द्वारा पंचवर्षीय योजनाओं के द्वारा नहरें बना कर सिंचाई की सुविधा की गई है।देश में विभिन्न नदी घाटी परियोजनाओं से नहरें निकाली गई है। उत्तर भारत में नहरों द्वारा अधिक सिंचाई की जाती है।
आजकल सिंचाई की नवीन पद्यति (ड्रिप (टपक) सिंचाई और स्रिपंकलर( छिड़काव) सिंचाई भी प्रचलित हो रही है सामान्यतः बागबानी फसलों जैसे - फल, फूल, शाकभाजी, आदि की टपक पद्धति द्वारा की जा रही है जब कि खाद्यान जैसे गेहूं , मटर इत्यादि फसलों की सिंचाई स्प्रिंकलर पद्धति द्वारा की जाती है।यह दोनों पद्धतियां भारत में मध्य --पश्चिम के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में अधिक प्रयोग की जाती है।इन सिंचाई पद्धतियों से सिंचाई में पानी कम खर्च होता है और फसल अच्छी होती है।
हरित क्रांति
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत खाद्यान्नों तथा अन्य कृषि उत्पादों की भारी कमी से जूझ रहा था। वर्ष 1947 में देश को स्वतंत्रता मिलने से पहले बंगाल में भीषण अकाल पड़ा था, जिसमें 20 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई थी। इसका मुख्य कारण कृषि को लेकर औपनिवेशिक शासन की कमज़ोर नीतियाँ थीं।
देश की जनसंख्या लगभग 30 करोड़ थी जो कि वर्तमान की जनसंख्या का लगभग एक-चौथाई है लेकिन खाद्यान्न उत्पादन कम होने के कारण उतने लोगों तक भी अनाज की आपूर्ति करना असंभव था। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद वैश्विक स्तर पर अनाज व कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिये शोध किये जा रहे थे तथा अनेक वैज्ञानिकों द्वारा इस क्षेत्र में कार्य किया जा रहा था। इसमें प्रोफेसर नार्मन बोरलाग प्रमुख हैं जिन्होंने गेहूँ की हाइब्रिड प्रजाति का विकास किया था, वर्ष 1966-67 में हरित क्रांति के माध्यम से कृषि उत्पादन क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य उन्नत किस्म के बीज , खाद, सिंचाई तथा आधुनिक यंत्रों का प्रयोग कृषि उपज में तीव्र वृद्धि करना था ।
भारत में हरित क्रांति का जनक एमएस स्वामीनाथन को कहा जाता है।
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