मृदा(SOIL):
मिट्टी का निर्माण टूटी चट्टानो के छोटे महीन कणों और खनिज, जैविक पदार्थो, बॅक्टीरिया आदि के मिश्रण से होता है। पृथ्वी के ऊपरी सतह पर मोटे, मध्यम और बारीक कार्बनिक तथा अकार्बनिक मिश्रित कणों को मृदा या मिट्टी कहते हैं।
मृदा के प्रकार (types of Soil)
भारत में मृदा निम्न प्रकार की पायी जाती है -
1. जलोढ़ मृदा/कछार मिट्टी (Alluvial soil)
2. काली मृदा या रेगुर मृदा (Black soil)
3. लाल मृदा(Red soil)
4. मरूस्थलीय मृदा (desert soil)
5. पर्वतीप मृदा (Mountain soil)
6. लैटेराइट मृदा (Laterite soil )
7. दलदली मृदा (Marsh soil)
1. जलोढ़ मृदा(Alluvial soil)
निर्माण
इसका निर्माण लाखों वर्षों से नदियों द्वारा नये गये जलोढ़क के जमा होने से बना है। नया जलोढ खादर तथा पुराना जलोढ बांगर कहलाता है
इसका वितरण 14.25 लाख वर्ग किलोमीटर (देश के सम्पूर्ण भाग का 43.4%) है।
क्षेत्र तथा राज्य
यह उत्तरीय मैदानी भाग या नदी बेसिन पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, का पूर्वी भाग, गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल तथा असम घाटी तक फैला हुआ है।
2. काली कपास मृदा या रेगुर मृदा (Black soil)
यह मृदा मैग्नीशियम और लोहा की उपस्थिति के कारण गहरा काला रंग होता है । तथा यह नाइट्रोजन और फास्फोरस अम्ल में अपूर्ण पोटास और चूना से परिपूर्ण होती है । यह मृदा कपास की खेती करने के लिए सर्वोत्तम होती है। इसका वितरण 49.8 मि. हेक्टेयर ( 15.2%) क्षेत्र फल है।
निर्माण
इसका निर्माण दक्कन लावा ग्रेनाइट और नीस से होता है। तथा नदियों द्वारा बहकर आयी मिट्टी से होता है।
क्षेत्र तथा राज्य
यह महाराष्ट्र, दक्षिणी ओडिशा, उत्तरीय कर्नाटक, राजस्थान के भागों ( दो जिले बूंदी और टोंक ) तथा मध्य और दक्षिण तमिलनाडु के पठार में पायी जाती है।
3. लाल मृदा (Red soil)
यह मृदा का लाल रंग लौह अयस्क की उपस्थिति के कारण होता है। तथा यह मृदा अकार्बनिक पदार्थ, फास्फोरस, नाइट्रोजन और चूना से परिपूर्ण होती है। इसमें पोटास तथा एल्युमिनियम की मात्रा संतोषजनक
होती है। इसका वितरण क्षेत्र 6.8 लाख वर्ग किलोमीटर ( 18.6%) है।
निर्माण
भारी वर्षा और औसत दर्जे के वर्षा में आग्नेय चट्टान के ऊपर यह मिट्टी विकसित होती है । यह लाल और पीले रंग के विभिन्न रंगों में होता है।
क्षेत्र तथा राज्य
यह तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के ज्यादातर भागों में, दक्षिणोत्तर महाराष्ट्र के भागों, पूर्वोत्तर मध्य प्रदेश, छोटा नागपुर और बुंदेलखंड में पायी जाती है।
4. मरूस्थलीय मृदा (desert soil)
इस मृदा में ह्यूमस तथा नाइट्रोजन की कमी होती है और फास्फोरस की बहुलता होती है। यह मृदा कम वर्षा और निक्षालन के कारण ऊपरी संस्तर पर खनिज मात्रा की बहुलता होती है। इसका वितरण क्षेत्र 1.42 लाख वर्ग किलोमीटर है।
निर्माण
इसका निर्माण हवा तथा तापमान के कारण अपक्षयण की मदद से होता है।
क्षेत्र तथा राज्य
यह पंजाब, हरियाणा का दक्षिण भाग , पश्चिम राजस्थान और गुजरात के कच्छ का रण तक फैला हुआ है।
5. पर्वतीय मृदा (Mountain soil)
यह मृदा उर्वर क्षमता से पूर्ण लेकिन पोटास , फास्फोरस तथा चूना की कमी होती है। यह मृदा चाय, काफी आदि के लिए अधिक उपयुक्त होती है। इसका वितरण क्षेत्र 1.42 लाख वर्ग किलोमीटर है।
निर्माण
इसका निर्माण वनस्पति के विकास से प्राप्त जैविक पदार्थों के अपघटन से हुआ है। इस मिट्टी की विशैषताए शैलों के स्वरूप में अन्तर , भूमि स्वरूप और और जलवायु की विभिन्नता द्वारा निर्धारित होती है।
क्षेत्र तथा राज्य
जम्मू-कश्मीर का हिमालय क्षेत्र, हिमाचल प्रदेश, पश्चिमी तथा पूर्वी घाट के साथ प्रायद्वीप भाग ।
6. लैटेराइट मृदा (Laterite soil )
यह मृदा ऊंचे क्षेत्रों में पायी जाती है। इसमें अधिक अम्लीयता एल्युमिनियम ओर लोहे के उपस्थिती के कारण नाइट्रोजन पोटास, मैग्नीशियम और फास्फोरिक एसिड की कमी होती है। इसका वितरण क्षेत्र 1.22 लाख वर्ग किलोमीटर ( 3.7% ) है।
निर्माण
लैटेराइट मृदा का निर्माण तीव्र उष्ण कटिबंधीय वर्षा के समय निक्षालन और शुष्क मौसम में ऊपरी मृदा के सूख जाने से होता है।
क्षेत्र तथा राज्य
यह उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र जहां वर्षा 200 सेमी. से अधिक होती है, पश्चिमी घाट, कर्नाटक, तमिलनाडु, छोटा नागपुर का पठार और उत्तर- पूर्वी राज्यों के ढलान वाले क्षेत्रों में।
7. दलदली मृदा (Marsh soil)
यह मृदा पीली एवं भूरी रंग की होती है। जिसमें उर्वरता की मात्रा काफी न्यून होती है। यह डेल्टाई क्षेत्रों में पायी जाती है। इसका वितरण क्षेत्र 1.08 लाख वर्ग किलोमीटर है।
निर्माण
इसका निर्माण डेल्टाई क्षेत्रों में अधिक नमी के कारण इस प्रकार की मृदा का विकास होता है।
क्षेत्र तथा राज्य
यह मृदा गंगा- ब्रम्हपुत्र, महानदी, गोदावरी,कृष्णा, कावेरी एवं अन्य नदियों के डेल्टाई क्षेत्र में।
मिट्टी का निर्माण टूटी चट्टानो के छोटे महीन कणों और खनिज, जैविक पदार्थो, बॅक्टीरिया आदि के मिश्रण से होता है। पृथ्वी के ऊपरी सतह पर मोटे, मध्यम और बारीक कार्बनिक तथा अकार्बनिक मिश्रित कणों को मृदा या मिट्टी कहते हैं।
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भारत में मृदा के प्रकार एवं मृदा वितरण |
मृदा के प्रकार (types of Soil)
भारत में मृदा निम्न प्रकार की पायी जाती है -
1. जलोढ़ मृदा/कछार मिट्टी (Alluvial soil)
2. काली मृदा या रेगुर मृदा (Black soil)
3. लाल मृदा(Red soil)
4. मरूस्थलीय मृदा (desert soil)
5. पर्वतीप मृदा (Mountain soil)
6. लैटेराइट मृदा (Laterite soil )
7. दलदली मृदा (Marsh soil)
1. जलोढ़ मृदा(Alluvial soil)
यह बहुत उर्वर मृदा, चूना तथा पोटास की बहुलता नाइट्रोजन तथा फास्फोरस की कमी होती है इस मृदा में चावल, गेहूं, गन्ना, जूट,
कपास की खेती करने के लिए बहुत ही अच्छी भूमि होती है। मृदा की आयु के आधार पर इसे बाँगर और खादर कहा जाता है बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में खादर मिट्टी में बाढ़ द्वारा नई-नई परतें जमती रहती हैं।
बांगर मिट्टी मोटी कंकडीली होती है। तथा यह बहुत पुरानी मिट्टी होती है जो भूमि के नीचे स्तर पर जमी हुई होती है।
निर्माण
इसका निर्माण लाखों वर्षों से नदियों द्वारा नये गये जलोढ़क के जमा होने से बना है। नया जलोढ खादर तथा पुराना जलोढ बांगर कहलाता है
इसका वितरण 14.25 लाख वर्ग किलोमीटर (देश के सम्पूर्ण भाग का 43.4%) है।
क्षेत्र तथा राज्य
यह उत्तरीय मैदानी भाग या नदी बेसिन पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, का पूर्वी भाग, गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल तथा असम घाटी तक फैला हुआ है।
2. काली कपास मृदा या रेगुर मृदा (Black soil)
यह मृदा मैग्नीशियम और लोहा की उपस्थिति के कारण गहरा काला रंग होता है । तथा यह नाइट्रोजन और फास्फोरस अम्ल में अपूर्ण पोटास और चूना से परिपूर्ण होती है । यह मृदा कपास की खेती करने के लिए सर्वोत्तम होती है। इसका वितरण 49.8 मि. हेक्टेयर ( 15.2%) क्षेत्र फल है।
निर्माण
इसका निर्माण दक्कन लावा ग्रेनाइट और नीस से होता है। तथा नदियों द्वारा बहकर आयी मिट्टी से होता है।
क्षेत्र तथा राज्य
यह महाराष्ट्र, दक्षिणी ओडिशा, उत्तरीय कर्नाटक, राजस्थान के भागों ( दो जिले बूंदी और टोंक ) तथा मध्य और दक्षिण तमिलनाडु के पठार में पायी जाती है।
3. लाल मृदा (Red soil)
यह मृदा का लाल रंग लौह अयस्क की उपस्थिति के कारण होता है। तथा यह मृदा अकार्बनिक पदार्थ, फास्फोरस, नाइट्रोजन और चूना से परिपूर्ण होती है। इसमें पोटास तथा एल्युमिनियम की मात्रा संतोषजनक
होती है। इसका वितरण क्षेत्र 6.8 लाख वर्ग किलोमीटर ( 18.6%) है।
निर्माण
भारी वर्षा और औसत दर्जे के वर्षा में आग्नेय चट्टान के ऊपर यह मिट्टी विकसित होती है । यह लाल और पीले रंग के विभिन्न रंगों में होता है।
क्षेत्र तथा राज्य
यह तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के ज्यादातर भागों में, दक्षिणोत्तर महाराष्ट्र के भागों, पूर्वोत्तर मध्य प्रदेश, छोटा नागपुर और बुंदेलखंड में पायी जाती है।
4. मरूस्थलीय मृदा (desert soil)
इस मृदा में ह्यूमस तथा नाइट्रोजन की कमी होती है और फास्फोरस की बहुलता होती है। यह मृदा कम वर्षा और निक्षालन के कारण ऊपरी संस्तर पर खनिज मात्रा की बहुलता होती है। इसका वितरण क्षेत्र 1.42 लाख वर्ग किलोमीटर है।
निर्माण
इसका निर्माण हवा तथा तापमान के कारण अपक्षयण की मदद से होता है।
क्षेत्र तथा राज्य
यह पंजाब, हरियाणा का दक्षिण भाग , पश्चिम राजस्थान और गुजरात के कच्छ का रण तक फैला हुआ है।
5. पर्वतीय मृदा (Mountain soil)
यह मृदा उर्वर क्षमता से पूर्ण लेकिन पोटास , फास्फोरस तथा चूना की कमी होती है। यह मृदा चाय, काफी आदि के लिए अधिक उपयुक्त होती है। इसका वितरण क्षेत्र 1.42 लाख वर्ग किलोमीटर है।
निर्माण
इसका निर्माण वनस्पति के विकास से प्राप्त जैविक पदार्थों के अपघटन से हुआ है। इस मिट्टी की विशैषताए शैलों के स्वरूप में अन्तर , भूमि स्वरूप और और जलवायु की विभिन्नता द्वारा निर्धारित होती है।
क्षेत्र तथा राज्य
जम्मू-कश्मीर का हिमालय क्षेत्र, हिमाचल प्रदेश, पश्चिमी तथा पूर्वी घाट के साथ प्रायद्वीप भाग ।
6. लैटेराइट मृदा (Laterite soil )
यह मृदा ऊंचे क्षेत्रों में पायी जाती है। इसमें अधिक अम्लीयता एल्युमिनियम ओर लोहे के उपस्थिती के कारण नाइट्रोजन पोटास, मैग्नीशियम और फास्फोरिक एसिड की कमी होती है। इसका वितरण क्षेत्र 1.22 लाख वर्ग किलोमीटर ( 3.7% ) है।
निर्माण
लैटेराइट मृदा का निर्माण तीव्र उष्ण कटिबंधीय वर्षा के समय निक्षालन और शुष्क मौसम में ऊपरी मृदा के सूख जाने से होता है।
क्षेत्र तथा राज्य
यह उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र जहां वर्षा 200 सेमी. से अधिक होती है, पश्चिमी घाट, कर्नाटक, तमिलनाडु, छोटा नागपुर का पठार और उत्तर- पूर्वी राज्यों के ढलान वाले क्षेत्रों में।
7. दलदली मृदा (Marsh soil)
यह मृदा पीली एवं भूरी रंग की होती है। जिसमें उर्वरता की मात्रा काफी न्यून होती है। यह डेल्टाई क्षेत्रों में पायी जाती है। इसका वितरण क्षेत्र 1.08 लाख वर्ग किलोमीटर है।
निर्माण
इसका निर्माण डेल्टाई क्षेत्रों में अधिक नमी के कारण इस प्रकार की मृदा का विकास होता है।
क्षेत्र तथा राज्य
यह मृदा गंगा- ब्रम्हपुत्र, महानदी, गोदावरी,कृष्णा, कावेरी एवं अन्य नदियों के डेल्टाई क्षेत्र में।
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