खनिज क्या है कहां पाये जाते हैं अयस्क क्या है अयस्क से धातु का निष्कर्षण

              खनिज एवं धातु

 खनिज प्राकृतिक पदार्थ के रूप में 

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बाक्साइट – एलुमिनियम का खनिज

खनिज वास्तव में पदार्थ के रूप में पृथ्वी की भू-पपर्टी का निर्माण विभिन्न प्रकार के तत्त्वों एवं यौगिको से हुआ है। भू-पपर्टी में प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला अकार्बनिक तत्व अथवा यौगिकों को खनिज कहते हैं। जैसे- क्वार्ट्ज, माइका,(अभ्रक), हेमेटाइट, बाक्साइट, अर्जेन्टाइट, ग्रेनाइट। इनके अतिरिक्त और भी बहुत से खनिज प्रकृति में पाते जाते हैं। चट्टानों में मुख्यतः सिलीकेटों, की बनी हैं जो कि पृथ्वी पर सबसे सामान्य खनिज हैं।

खनिज कहां पाये जाते हैं ?

खनिज पदार्थ पृथ्वी के तल पर भू-पपर्टी में तथा समुद्र में पाये जाते हैं। सोडियम क्लोराइड, सोडियम आयोडाइड, सोडियम आयोडेट, आदि खनिज समुद्री जल में पाते जाते हैं। खनिज धातु तथा अधातु दोनों प्रकार के हो सकते हैं। स्फटिक, क्वार्ट्ज, अभ्रक, आदि अधातु खनिज हैं। खनिज, धातु व अधातु तत्त्वों के यौगिक भी हो सकते हैं, जैसे- (Al2O3.2H2O) नामक खनिज एलुमिनियम (धातु) तथा आक्सीजन (अधातु) का यौगिक है। इसी प्रकार कापर ग्लास ( Cu2S ) तांबा (धातु) तथा सल्फर (अधातु) का यौगिक है। अधिकांश धातुएं  संयुक्त अवस्था में अपने यौगिकौ के रूप में प्राप्त होती है। प्रकृति में केवल कुछ ही धातुएं मुक्त अवस्था में पायी जाती है। उदाहरण के लिए सोना तथा प्लेटिनम जैसी धातुएं तत्त्व के रूप में पायी जाती हैं। अन्य अधिकांश धातुएं प्रकृति में यौगिकों के रूप में पायी जाती हैं। एलुमिनियम, लोहा और मैंगनीज जैसी अनेक धातुएं आक्साइड के रूप में तथा धातुएं सल्फाइड तथा कार्बोनेट के रूप में पायी जाती हैं।

अयस्क

लगभग सभी चट्टानों में कुछ न कुछ मात्रा में धात्विक खनिज पाते जाते हैं, परन्तु कुछ में धातु की मात्रा इतनी कम होती है कि उससे धातु को निष्कर्षित करना कठिन एवं बहुत महंगा पड़ता है। यदि खनिज में धातु की मात्रा अधिक होती है तो उससे धातु का निष्कर्षण सरल एवं लाभकर होता है। ऐसे खनिज, जिनसे धातु का निष्कर्षण अधिक मात्रा में सरलतम से एवं कम लागत में हो जाता है, अयस्क (Ore) कहलाते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि सभी अयस्क खनिज होते हैं परन्तु सभी खनिज अयस्क नहीं होते हैं।

धात्विक खनिज (अयस्क) किन किन रूपों में पाए जाते हैं 

अयस्क – धातुओं के आक्साइड, सल्फाइड, सल्फेट, तथा कार्बोनेट, के रूप में पाये जाते हैं। अधिकांश अयस्कों में केवल एक ही धातु उपस्थित होती है। कुछ प्रमुख अयस्क एवं उनसे निष्कर्षित किए जाने वाले धातु अधोलिखित तालिका में दिखाये
 गये हैं।
धातु अयस्क का नाम रासायनिक सूत्र अयस्क का रूप
मैग्नीशियम  मैग्नेसाइट MgCO3 कार्बोनेट
जिंक कैलेमाइन ZnCO3 कार्बोनेट
लेड गैलेना pbS फल्फाइड
कापर कापर ग्लांस Cu2S फल्फाइड
आयरन हेमेटाइट Fe2O3 आक्साइड
एलुमिनियम बाक्साइट Al2O3.2H2O आक्साइड
सिल्वर  अर्जेन्टाइन Ag2S फल्फाइड
कैल्सियम जिप्सम CaSO4.2H2O सल्फेट
नोट- 

कुछ अयस्क में प्रमुख धातु के अतिरिक्त अन्य धातु उपस्थित हो सकते हैं जैसे- तांबे के अयस्क केल्को पाइराइट‌ में तांबा, क्रोमियम के अयस्क क्रोमाइट में क्रोमियम, टाइटेनियम के अयस्क इलमेनाइट में आयरन भी उपस्थित होता है।

भारत में खनिज की उपलब्धता 

हमारे देश में लोहा, तांबा, एलुमिनियम, आदि अनेक धातुएं पृथ्वी की भू-पपर्टी में उपस्थित खनिजों से प्राप्त की जाती है।कुछ धातुएं हमारे देश में उपलब्ध नहीं हैं। अतः हम उन धातुओं को छोड़ कर अन्य देशों से आयात करते हैं।आइये अपने देश में पायी जाने वाले खनिजों के बारे में जानकारी प्राप्त करें।भारत में पाते जाने वाले खनिज एवं उनके प्राप्ति स्थान निम्नलिखित हैं:-
धातु का नाम अयस्क का नाम प्राप्ति स्थान
लोहा हेमेटाइट बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़
तांबा काॅपर पाइराइट आन्ध्र प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान
सोना मुक्त अवस्था में  कोलार खान-कर्नाटक, आंध्र प्रदेश
एलुमिनियम बाॅक्साइट मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, तमिलनाडु, गुजरात, जम्मू-कश्मीर
इन धात्विक खनिजों के अतिरिक्त देश में कुछ अधात्विक खनिज जैसे अभ्रक, कोयला, पेट्रोलियम, पाये जाते हैं। पेट्रोलियम द्रव अवस्था में भू-पपर्टी से प्राप्त किया जाता है। इसलिए इसे खनिज तेल भी कहते हैं। अपने देश में इनकी उपलब्धता निम्नलिखित तालिका में दी गई है-
 अधात्विक खनिज प्राप्ति स्थान
अभ्रक बिहार, उड़ीसा, तमिलनाडु, राजस्थान
बहुमूल्य पत्थर राजस्थान
पेट्रोलियम गुजरात, असम, अरबसागर के तटीय क्षेत्र तथा कावेरी, कृष्णा, गोदावरी के मुहाने पर।
कोयला पश्चिम बंगाल, बिहार, तमिलनाडु
नोट-
भारत में सोना, तांबा, जिंक तथा टंगस्टन खनिजों की उपलब्धता बहुत कम है तथा प्लेटिनम खनिज का पूर्ण अभाव है।
अयस्क से धातु का निष्कर्षण 
अयस्क से शुद्ध धातु कई क्रमिक प्रक्रमों के पश्चात प्राप्त होती है। अयस्क से अशुद्धियों को दूर करके धातु को निकालने तथा शुद्ध करने के प्रक्रम धातुकर्म कहलाता है। धातुकर्म प्रक्रमों को सुविधानुसार निम्नलिखित चरणों में बांटा जा सकता है।
अयस्क का सान्द्रण – सर्वप्रथम अयस्क से मिट्टी कंकड़ पत्थर आदि को अलग कर लिया जाता है । अयस्क से अशुद्धियों को पृथक करने की विधि सांद्रण कहलाती है। अयस्क का सान्द्रण तीन विधियों से किया जा सकता है।
1. गुरुत्वीय पृथक्करण विधि- यदि अयस्क में पायी जाने वाली अशुद्धियों को दूर करते हैं। इस विधि का उपयोग तभी करते हैं जब अशुद्धि धातु से हल्की हो । इसमें अयस्क को जल के साथ तेज धारा में प्रवाहित करते हैं। जल प्रवाह के कारण भारी अयस्क तो अवरोधकों के बीच रूक जाते हैं। जब कि हल्कि अशुद्धियां जल के साथ बह जाती हैं।
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गुरूत्वीय पृथक्करण विधि

2. चुम्बकीय पृथक्करण विधि- यदि अयस्क में चुम्बकीय अशुद्धियां उपस्थित हो तो सांद्रण के लिए चुम्बकीय सान्द्रण विधि का उपयोग किया जाता है। इसमें चुम्बकीय पृथक करी एक चमड़े का पट्टा होता है , जो दो रोलर पर घूमता रहता है जिनमें से एक रोलर विद्युत चुम्बकीय होता है। बारीक पिसे हुए अयस्क को चूमते हुए पट्टे के एक सिर पर डालते हैं।जब अयस्क चलते पट्टे के दूसरे सिरे के पास पहुंच कर गिरता है, तो अयस्क का भाग चुम्बकीय भाग चुम्बक से आक्र्षित होकर उसके समीप एक ढेर के रूप में इक्कट्ठा हो जाता है। इसी प्रकार अचुम्बकीय अशुद्धियां अयस्क से दूर गिरकर एक पृथक ढेर बनाती हैं। इस प्रकार से हम अशुद्धियों को दूर कर सकते हैं।
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चुम्बकीय पृथक्करण विधि
 3. फेन प्लवन‌ विधि – इस विधि में बारीक पिसे हुए अयस्क को बड़े हौज में जल के साथ मिश्रित करके कर्दम बना लेते हैं। तद्पश्चात उसमें चीड़ का तेल डालते हैं। सामान्यतः चीड़ के तेल से सल्फाइड अयस्क तथा गैंग को जल द्वारा गीला किया जाता है। इस कर्दम में जब तीव्र गति से वायु प्रवाहित की जाती है, तो उसके फलस्वरूप तेल से चिपक कर अयस्क के हल्के कण ऊपर उठ कर टैंक की ऊपरी सतह पर आकर मलफेन के रूप में तैरने लगते हैं। इसके बाद इस मलफेन को सुखा कर अयस्क के कण प्राप्त कर लेते हैं। इसी विधि को फेन प्लवन विधि कहते हैं।
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फेन प्लवन विधि

  सल्फाइड अयस्क का सान्द्रण फेन प्लवन विधि द्वारा किया जाता है।


प्रगलन (Smelting)
भर्जन या निष्तापन के पश्चात प्रगलन की क्रिया एक विषेश प्रकार की भट्ठी में की जाती है। जैसे भर्जित हेमेटाइट अयस्क को कार्बन और चूना के साथ मिलाकर वत्या भठ्ठी में प्रगलन करने पर विभिन्न क्रियाओं के पश्चात कुलचा लोहा प्राप्त होता है। प्रगलन क्रिया में अगलनीय अशुद्धियों को गला कर दूर किया जाता है।
पिग आयरन क्या है ?
वात्या भट्ठी से प्राप्त लोहा “पिग आयरन” कहलाता है। इसमें 93% लोहा 5% कार्बन तथा शेष सल्फर , फास्फोरस, सिलिकॉन की अशुद्धियां उपस्थित होती हैं। जिसके कारण इसका गलनाक कम होता है यह बंगुर होता है।इसका उपयोग पाइप , स्टोरज टंकी , नहाने के टब कूडा दान , आदि बनाने में किया जाता है।
तन्यता क्या है ?
धातुओं को तार के रूप में परिवर्तित करने के गुण को “तन्यता” कहते हैं। घरों में विद्युत तार कापर या एलुमिनियम के बने होते हैं इन तारों में तन्यता होती है।
सोने की इतनी पतली चादर बनाई जा सकती है कि २० लाख चादरों की मोटाई केवल एक सेंटीमीटर होगी।
एक ग्राम सोने से लगभग २ किलोमीटर लम्बा तार बनाया जा सकता है।
अघातवर्धनीयता क्या है? 
धातुओं को पीट कर चादरों के रूप में परिवर्तित करने के गुण को अघातवर्धनीयता कहते हैं। सोने-चांदी में अघातवर्धनीतया का गुण अधिक होता है।
 
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