वर्णविचार
संस्कृत - समय + कृ + क्त (सुट का आगम )
संस्कृत शब्द का अर्थ है - शुद्ध, परिष्कृत, परिमार्जित, परिनिष्ठित। अतः संस्कृत भाषा का अर्थ है - शुद्ध एवं परिमार्जित भाषा ।
व्याकरण- वि + आड् + कृ (धातु) + ल्युट्
व्याक्रियन्ते व्युपाद्यान्ते अनेन इति व्याकरणम् अर्थात् जिसके माध्यम से शब्दो की व्युत्पत्ति बतायी जाय , वह व्याकरण है।
त्रिमुनि - संस्कृत व्याकरण के त्रिमुनि हैं-
1. पाणिनी
2. कत्यायन/ वररूचि
3. पतंजलि
वर्ण विचार
वर्ण अथवा अक्षर - हम मुख से जिन ध्वनियों का उच्चारण करते हैं, उन्हें वर्ण अथवा अक्षर का कहते हैं। वैसे तो 'न क्षरति इति अक्षर:' अर्थात् जिनका क्षरण या विनाश न हो वे अक्षर हैं, जैसे-
अ, इ, उ, क् , ख् , ग् , आदि, परन्तु सामान्यतः वर्ण या अक्षर समानार्थी समझे जाते हैं। वर्ण दो प्रकार के होते हैं-
1. स्वर , 2. व्यंयजन
स्वर (अच् ) - 'स्वयं राजन्ते इति स्वरा:' -
स्वर वे ध्वनियां हैं, जिनके उच्चारण के लिए किसी अन्य वर्ण की आवश्यकता नहीं होती है जैसे- अ के उच्चारण में किसी अन्य स्वर या व्यंयजन वर्णो की सहायता नहीं लेनी पड़ती इसलिए अ स्वर है। इस प्रकार अ,इ, उ, ऋ, ए, ओ, ऐ, औ, ये सभी स्वर हैं।
स्वरों की संख्या-
संस्कृत व्याकरण शास्त्र में स्वरों की संख्या 09 मानी गयी है।
जैसे- अ, इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ। ये सभी स्वर अच् प्रत्याहार के अन्र्तगत आते हैं इसलिए स्वरों को अच् भी कहा जाता है।
मूल स्वर - मूल स्वर 05 होते हैं । अ, इ, उ, ऋ, लृ, ये पांच मूल स्वर कहे जाते हैं।
संयुक्त स्वर - ए, ओ, ऐ, औ, ये चार संयुक्त स्वर या मििश्रित स्वर कहे जाते हैं।
जैसे- अ + इ = ए
अ + उ = ओ
अ + ए = ऐ
अ + ओ = औ
स्वरों के भेद -
स्वरों के मुख्यत: तीन भेद हैं-
हास्व स्वर -जिन स्वरों के उच्चारण में एक मात्रा का समय लगे, उन्हें, ह्स्व कहते हैं।
जैसे - अ, इ, उ, ऋ लृ, ये सभी ह्स्व स्वर हैं।
दीर्घ स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में दो मात्रा का समय लगे, उन्हें, दीर्घ कहते हैं।
जैसे- आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ओ, ऐ, औ।
प्लुत स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में दो मात्रा से अधिक का समय लगे, उन्हें, प्लुत स्वर कहते हैं।
जैसे- ओ३म, नमा३तुते।
व्यंयजन (हल् वर्ण )
व्यंयजन- 'अन्वग् भवति व्यंयजनम्'
व्यंयजन वे वर्ण हैं, जो स्वतन्त्र रूप से न बोले जा सके अर्थात् जिनका उच्चारण स्वर के बिना नहीं हो सकता।
जैसे- क् + अ = क
ख् + अ = ख
ग् + अ = ग आदि
- व्याकरण में जो शुद्ध व्यंयजन वर्ण होंगे उन्हें हलन्त के साथ ही लिखा जाता है। जैसे - क् च् ट् त् प् आदि। इसलिए इन्हें अर्धमात्रिकम् वर्ण कहा गया है। ''व्यंयजनं चार्धमात्रिकम् '
- सभी व्यंंजन वर्ण हल् प्रत्याहार में समाहित होते हैं अतः व्यज्जनों को हल भी कहते हैं।कुल व्यंज्जन वर्ण 33 माने गये हैं। जो कि माहेश्वर सू़त्रों के 'हयवरट' से लेकर हल् तक 10 सूत्रों में कहे गए हैं।
वर्ग | व्यंज्जन |
---|---|
क वर्ग | क् ख् ग् घ् ड् |
च वर्ग | च् छ् ज् झ् ञ् |
ट वर्ग | ट् ठ् ड् ढ् ण् |
त वर्ग | त् थ् द् ध् न् |
प वर्ग | प् फ् ब् भ् म् |
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