हिंदी वर्णमाला(Hindi Varnamala) देवनागरी लिपि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह 52 अक्षरों से बनी है, जिनमें 14 स्वर और 38 व्यंजन शामिल हैं। स्वर बोलने के लिए आवश्यक हैं, जबकि व्यंजन बोलने के लिए आवश्यक हैं। हिंदी वर्णमाला को समझना हिंदी सीखने के लिए आवश्यक है, लेकिन यह सीखने और समझने के लिए एक सरल प्रणाली भी है।
वर्णमाला (Hindi Varnamala)
वर्णमाला परिभाषा – ध्वनि की मूल इकाई को वर्ण तथा वर्णो के सुव्यवस्थित समूह या समुदाय को वर्णमाला कहते हैं।
वर्तमान लेखन के आधार पर स्वर और व्यंजन की संख्या 52 है। 11 स्वर, 25 स्पर्श, 4 ऊष्मा, 4 अन्तस्थ, 4 संयुक्त, 2 द्विणुण, 2 आयोग्वाह=52
* कामता प्रसाद गुरू के अनुसार वर्णों की संख्या – 46
11 स्वर , 33 व्यंजन, 2 अयोगवाह (अं,अ:)
* उच्चारण के आधार पर वर्णों की संख्या – 45
10 स्वर, (उच्चारण के आधार पर ऋ को नहीं मना जाता है), 27 स्पर्श (इसमें 2 द्विगुण व्यंजनों भी शामिल हैं), ऊष्म 4, अन्तस्थ 4
* स्पर्श व्यंजनों की संख्या – 25
* स्पर्शी व्यंजनों की संख्या – 16
स्वर क्या है, स्वर की परिभाष
स्वर- जो वर्ण स्वतन्त्र रूप से बोले जाते हैं। उन्हें स्वर कहते हैं।
स्वरों की संख्या- 11
उच्चारण के आधार पर – 10
स्वरों का वर्गीकरण
1. उत्पत्ति के आधार पर स्वरों के भेद
उत्पत्ति के आधार पर स्वरों के 2 भेद माने गए हैं-
1. मूल स्वर – अ, इ,
2. संधि स्वर – जिन स्वरों का निर्माण दो खण्ड के योग से हो । संधि स्वर दो प्रकार के होते हैं – आ,ई,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ
- सजातीय स्वर- जो स्वर समान जाति के योग से निर्मित हो। इन्हें मूल दीर्घ स्वर भी कहते हैं । जैसे- आ = अ+अ, ई= इ+इ, ऊ= उ+उ
- विजातीय स्वर- इनकी संख्या 4 होती है। इन्हें संयुक्त स्वर भी कहते हैं। जैसे- ए=अ+इ, ऐ=अ+ए, ओ=अ+ई, और=अ+ओ।
2. मात्रा के आधार पर स्वरों के भेद (vdo exam 2018)
मात्रा के आधार पर स्वरो के दो भेद माने गए हैं-
1. ह्रस्व स्वर (लघु) – अ, इ, उ, ऋ
2. दीर्घ स्वर (गुरू) – आ,ई,ऊ,ए,ऐ,ओ,और
3. कुल स्वरों के प्रकार – 3 होते हैं (मुख्य रूप से 2)
- ह्रस्व स्वर – जिन स्वरों का उच्चारण करने पर कम समय लगता है, ह्रस्व स्वर कहते हैं। जैसे- अ,इ,ई,ऋ।
- दीर्घ स्वर – जिन स्वरों का उच्चारण करने पर ह्रस्व की अपेक्षा अधिक समय लगता है। जैसे- आ, ई, ऊ, ए,ऐ,ओ,औ।
- प्लुत स्वर – इनके उच्चारण करने में अधिक समय लगता है। जैसे – ओइम, मंत्रों का उच्चारण।
4. जीह्वा के आधार पर स्वर के भेद
जीह्वा के आधार पर स्वर के भेद 3 प्रकार होते हैं।
- अग्र – इ,ई,ए,ऐ
- मध्य – अ
- पश्च – आ,ओ,औ,उ,ऊ
5. उच्चारण या ओष्ठ के आधार पर स्वरों के भेद
उच्चारण या ओष्ठ के आधार पर स्वरों के 2 भेद होते हैं।
- आवृत्तमुखी- जिन स्वरों के उच्चारण में ओष्ठ गोलाकार अथवा वृत्ताकार स्थिति में नहीं होते हैं। उसे आवृत्तमुखी स्वर कहते हैं। उदाहरण- अ,आ,इ,ई,ए,ऐ।
- वृत्तमुखी- जिन स्वरों के उच्चारण में ओष्ठ गोलाकार अथवा वृत्ताकार स्थिति में होते हैं उसे वृत्तामुखी स्वर कहते हैं। उदाहरण- उ,ऊ,ओ,औ।
6. मुख खुलने/मुख विवर के आधार पर स्वरो के भेद
मुख्य खुलने अथवा मुख विवरण के आधार पर स्वरों के 4 भेद माने गए हैं-
- संवृत्त स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में मुंह बंद रहता है। उदा. इ, ई, ई, ऊ।
- अर्द्ध संवृत्त स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में मुख थोड़ा सा खुले। उदा- ए, ओ।
- विवृत्त स्वर- जिन स्वरों के उच्चारण में मुख सबसे अधिक खुलता हो। उदा- आ।
- अर्द्ध विवृत्त स्वर – विवृत्त की अपेक्षा थोड़ा कम मुख खुले। उदा- अ, ऐ, औ।
वर्णमाला – महत्वपूर्ण वनलाइनर
अर्द्ध स्वर | य,व |
कण्ठीय स्वर | अ,आ |
ताल्वय स्वर | इ,ई |
मूर्धन्य स्वर | ऋ |
ओष्ठीय स्वर | उ,ऊ |
कण्ठोष्ठीय स्वर | ओ,औ |
कण्ठ ताल्वय स्वर | ए,ऐ |
प्राकृतिक स्वर | अ, इ, उ |
उदासीन स्वर | अ |
व्यंजन क्या है, व्यंजन की परिभाषा
व्यंजन- जो वर्ण स्वरों को सहायता लेकर बोले जाते है। उन्हें व्यजन कहते हैं। व्यंजनों की संख्या – 33 होती हैं।
व्यंजनों का वर्गीकरण
1. स्पर्श व्यंजन – स्पर्श व्यंजनों की संख्या 25 होती है। *उच्चारण के आधार पर स्पर्श व्यंजनों की संख्या 27 होती है।
कण्ठीय व्यंजन | क,ख,ग,घ,ड |
तालव्य व्यंजन | च,छ,ज,झ,ञ (स्पर्श संघर्षी) |
मूर्धान्य व्यंजन | ट,ठ,ड,ढ,ण |
दंतीय व्यंजन | त,थ,द,ध,न |
ओष्ठीय व्यंजन | प,फ,ब,भ,म |
2. अंतस्थ व्यंजन – मुख और नाक में वायु का प्रवाह हो । जैसे – य,र,ल,व।
3. ऊष्म व्यंजन – मुख और नाक से समान मात्रा में वायु बाहर निकले। जैसे – श,ष,स,ह।
3. संयुक्त व्यंजन – जो वर्ण दो विभिन्न वर्णों के योग से मिलकर बनते हैं। इसकी संख्या 4 होती है। क्ष,त्र,ज्ञ,श्र।
5. द्विगुण या उत्क्षिप्त व्यंजन- जिन वर्णों का उच्चारण करने पर जीभ ऊपर उठकर तुरंत नीचे गिरती है। उसे द्विगुण या उत्क्षिप्त व्यंजन कहते हैं।
जैसे- ड़,ढ़ ।
6. अयोगवाह व्यंजन – जो वर्ण अ के योग से बने हैं किन्तु व्यंजन के लिए अर्थ प्रकट करते हैं। जैसे – अं,अः।
7. आगत व्यंजन – इनका प्रयोग अरबी और फारसी भाषा में मिलता है। जैसे- ज़, फ़।
8. लुंठित व्यंजन या प्रकंपित व्यंजन – जिस व्यंजन के उच्चारण के समय जीभ की नोक वायु से रगड़ खाकर काॅपती है उसे लुंठित व्यंजन कहते हैैं। जैसे- र
9. पार्श्विक व्यंजन – जिस व्यंजन के उच्चारण में जीभ श्वास वायु के मार्ग में खड़ी हो जाती है। और श्वास वायु उसके बगल से प्रवाह हो जाती है।
*काकल्य वर्ण – जिस व्यंजन ध्वनि के उच्चारण में मुख गुहा खुली रहती है और वायु बंद कंठ को खोल कर झटके से बाहर निकलती है। जैसे- ह
*द्वित्व व्यंजन – यदि दो समान व्यंजनों के बीच कोई स्वर न हो उसे द्वित्व व्यंजन कहते हैं। जैसे- दिल्ली, बिल्ली, सत्ता, कलकत्ता।
कंठीय व्यंजन | अः,ह |
तालव्य व्यंजन | श,य |
मूर्धन्य व्यंजन | ड़,ढ़,र,ष |
दंत्यीय व्यंजन | ल, स, ज़ |
स्वतंत्रीय व्यंजन | ह |
दंतोष्ठीय व्यंजन | व |
दनतमूल (वत्सर्य) | न, स, र, ल ज |
ललल
घोषत्व के आधार पर वर्णों के भेद
घोषत्व के आधार पर वर्णों के भेद होते हैं सघोष या घोष तथा अघोष।
- सघोष या घोष – इन वर्णों को बोलने पर स्वर तंत्रिकाओं में कम्पन होता है। जैसे- प्रत्येक वर्ग का 3,4,5 अच्छर तथा सभी स्वर, द्विगुण व्यंजन एवं अन्तस्थ व्यंजन।
- अघोष – स्वर तंत्रिकाओं में कम्पन न हो। जैसे- प्रत्येक वर्ग का 1,2 अच्छर तथा श,स,स
अघोष | सघोष |
---|---|
क,ख | ग,घ,ङ |
च,छ | ज,झ,ञ |
ट,ठ | ड,ढ,ण |
त,थ | द,ध,न |
प,फ | व,भ,म |
श,ष,स | य,र,ल,व + सभी स्वर+ह |
प्राणतत्व के आधार पर वर्णो के भेद
प्राणतत्व के आधार पर वर्णों के दो भेद होते हैं-
1. अल्पप्राण- इन वर्णों के उच्चारण में कम श्वास वायु की आवश्यकता होती है। जैसे- प्रत्येक वर्ग का पहला,दूसरा तथा तीसरा अच्छर, अन्तस्थ व्यंजन, स्वर
2. महाप्राण- इन वर्णों के उच्चारण में कम श्वास वायु की आवश्यकता होती है। जैसे – प्रत्येक वर्ग का 2,4 + ऊष्म व्यंजन।
अल्पप्राण | महाप्राण |
---|---|
क,ग,ङ | ख,घ |
च,ज,ञ | छ,झ |
ट,ड,ण | ठ,ढ |
त,द,न | थ,ध |
प,व,म | फ,भ |
य,र,ल,व+स्वर | श,ष,स |
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