जीन पियाजे का जीवन परिचय | Biography of Jean Piaget in hindi

 जीन पियाजे का जीवन परिचय

जन्म        :    9 August 1896
मृत्यु         :  16 सितम्बर 1980
स्थान      :     स्विट्जरलैंड
विशेषज्ञ   :    जंतु विज्ञान चिकित्सक ,मनोविज्ञान
प्रयोग      :    अपने ही 3 साल के बच्चों पर
सहयोगी  :    बारवेल इन्हेलडर
प्रमुख पुस्तक :  लैंग्वेज एंड थॉट ऑफ़ चाइल्ड
विकासात्मक मनोविज्ञान के जनक  : जीन पियाजे

” विकास गर्भावस्था से जबकि संज्ञान विकास शैशवावस्था से प्रारंभ होकर जीवन पर्यंत चलता रहता है।”

पियाजे के सिद्धांत-
  1. भाषा एवं विचार का सिद्धांत
  2. नैतिक विकास का सिद्धांत
  3. संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत
  4. विकासात्मक सिद्धांत

पियाजे ने मानव संज्ञान विकास  की अवस्थाएं

1. संवेदी पेशी अवस्था  (इंद्री जनित अवस्था)  – 0 से 2 वर्ष 
इस अवस्था में शिशु अपनी संवेदनाओंशारीरिक क्रियाओं के माध्यम से सीखता है वस्तुओं को देखकर स्पर्श करके गंध के द्वारा तथा स्वाद के माध्यम से ज्ञान ग्रहण करता है। वस्तु स्थायित्व का ज्ञान नहीं होता है बच्चा अनुकरण के माध्यम से सीखता है शारीरिक विकास तीव्र गति से होता है।
संवेदी पेशीय अवस्था के प्रमुख शब्द
  • वस्तु स्थायित्व
  • परावर्ती क्रियाओं
  • मानसिक निरूपण
  • अनुकरण
  • मूल्य प्रवृत्यात्मक व्यवहार
  • स्मृति और इंद्रियों द्वारा मांगों द्वारा निर्धारण
  • प्रतिनिधि नाटक
  • लक्ष्य उद्देश्य व्यवहार
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2. पूर्व संक्रियात्मक अवस्था ( 2-7 ) वर्ष
इस अवस्था मैं बच्चा दूसरे के संपर्क से अनुकरण के माध्यम से सीखता है हल्की भारी वस्तु में अंतर कर लेता है नाम की पहचान कर लेता है बालक आंतरिक चिंतन करने योग्य नहीं होता इसलिए इस अवस्था को आंतरिक चिंतन की अवस्था कहते हैं।
पूर्व संक्रियात्मक अवस्था के प्रमुख शब्द
  • अविलोमियता (अपलटावीपन)
  • संरक्षण का अभाव
  • केंद्रीकरण
  • जीववाद
  • दूसरों के दृष्टिकोण को समझना पाना
  • गिनती ,वर्णमाला ,क्रम आदि की शुरुआत
  • संकेत समझना
  • चिन्ह समझना
3. मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (संजीवात्मक चिंतन)  (7-12) वर्ष
मूर्त संक्रियात्मक अवस्था के प्रमुख शब्द
  • मूर्त चिंतन
  • गणितीय गणना 
  • वैचारिक अवस्था
  • मूर्त प्रत्यक्ष वस्तु का अध्ययन
  • चिंतन की तैयारी का काल 
  • चिंतन की शुरुआत हो जाती है
  • खेल सामाजिक भावना का विकास
  • पलटावीपन का विकास
4. औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था (12-15)वर्ष
 
किशोर मूर्ति के साथ-साथ चिंतन करने योग्य भी हो जाता है इसलिए इसे तार्किक अवस्था भी कहते हैं
इसमें कल्पना शक्ति , निरीक्षण, समस्या समाधान , मानसिक योग्यताओं का विकास हो जाता है।
औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था के प्रमुख शब्द
  • परिकल्पित वर्तुल प्रतिक्रियाएं
  • अपसारी चिंतन
  • अमूर्त चिंतन

जीन पियाजे का योगदान-

➤ बाल केंद्रित शिक्षा पर
➤ शिक्षक को बालक की समस्याओं का निदान करना चाहिए
➤ बालक को उचित वातावरण प्रदान कराना चाहिए
कारक – भौतिक विश्व के साथ अनुभव

स्कीमा (प्रारूप / योजना ) सूचना का भंडार ग्रह-

जीन पियाजे ने बुद्धि को जीव विज्ञान को इसी की मां की भांति बताया है मानसून संरचना को व्यवहार गत समांतर प्रक्रिया जीव विज्ञान में इसकी मां कहलाती है।
 ➤ मानसिक संरचना जो चिंतन के निर्माण प्रखंड है।
किसी भी जानकारी को सुनिश्चित(व्यवस्थित) ढंग से ग्रहण       करना।

अनुकूलन (Adoption) – व्यक्ति को परिस्थिति के अनुसार ढलना

 सूचनाओं को अपने हिसाब से डालना
 पियाजे मैं अनुकूलन के दो भाग बताएं हैं

1. समावेशन (आत्मसात करना) (Assimilation)

पूर्व ज्ञान को नवीन ज्ञान से जोड़ना

2. समंजन (समायोजन) (Accommodation)

नई जानकारी के कारण पुरानी जानकारी के गलत हो जाने पर या विरोध पैदा होता है फिर जानकारी को ठीक करना
(नवीन जानकारी में संशोधन की प्रक्रिया)
➤ पियाजे ने अपने आप से बात करने को अंहकेंद्रित भाषा         कहा
     इसी को वाइगोत्सकी महोदय ने निजी भाषा कहा
➤ पियाजे के अनुसार बच्चे सक्रिय ज्ञान के निर्माता तथा नन्हा वैज्ञानिक हैं जो संसार के बारे में अपने सिद्धांतों की रचना करते हैं।
➤ बच्चे अपनी समझ से विश्व की परिकल्पना करते हैं ।
➤ बच्चे दुनिया के बारे में अपनी समझ कर सृजन करते हैं।
➤ पियाजे के अनुसार बच्चों का चिंतन वयस्कों से प्रकार में भिन्न होता है बजाए मात्रा के
 
जीन पियाजे के महत्वपूर्ण शब्द 
संक्रिया (Operation)– किसी वस्तु को बिगाड़ कर या तोड़फोड़ कर पहले जैसा करने की कोशिश
जीववाद (Animism) – (वस्तु को जीवित मारना)
मूल्य प्रवृत्यात्मक व्यवहार (रोना, हंसना)
अविलोमियता/ अंतः करणीशलता / अप्रतिवर्ती 
संरक्षण का अभाव (सुरक्षित रखने की अवस्था)
केंद्रीकरण ,संकलन 
साम्यधारण , संतुलन
आत्मसात करण –पूर्व ज्ञान में नया ज्ञान जोड़ना
विशिष्टीकरण– नए विचारों का विस्तार
संरक्षण – मूल आकृति को पहचानना
वस्तु स्थायित्व – वास्तु भले ही आंखों से ओझल हो जाए लेकिन उसका अस्तित्व रहता है।
अपलटावीपन –अपनी स्थिति में पुनः लौटना पाना
विकेंद्रीकरण
अनुकरण – अपने बड़ों का अनुकरण करना
गणितीय संक्रियाएं- जोड़ घटाना गुणा भाग सीख जाना
वर्गीकरण – समान वस्तुओं का एक समूह बनाना जो दूसरी वस्तु से अलग है
कार्य करण – कोई कार्य हुआ है तो उसके पीछे का कारण जरूर होगा
संगठन – बच्चे अपनी जानकारी को स्कीमा में भेजने से पहले अपने  हिसाब से व्यवस्थित करते हैं

जीन पियाजे का नैतिक विकास का सिद्धांत

1. पूर्व नैतिक अवस्था (0-5) वर्ष 
इसमें बालक में कोई नैतिकता नहीं होती हैै।
2. परायत / पराधीन / स्वतंत्र (नैतिक यथार्थवाद) अवस्था 
(5-9)वर्ष
बालक में नैतिकता निश्चित होती है इसे बदला नहीं जा सकता है उदाहरण– जीव को मारना पाप है।
3. स्वायत्त / स्वतंत्र नैतिकता / नैतिक सापेक्षता
 (10 वर्ष से अधिक) 
इसमें नैतिकता निश्चित नहीं है परिस्थिति पर निर्भर करती है जरूरत पड़ने पर नैतिकता बदल जाती है ।
उदाहरण – आर्मी में भर्ती हो जाना

भाषा एवं विचार का सिद्धांत 

भाषा के दो प्रकार बताएं
1. अंहकेंद्रित भाषा (Egocentric)
a.शैशवावस्था
b.एक तरफा
2. सामाजिक भाषा  (Socialized)
a.शैशवा अवस्था  से आगे
b.दो तरफा
Note – यह सिद्धांत के प्रतिपादक के लिए रूसो इंस्टिट्यूट में एक अध्ययन किया
पियाजे महोदय ने विचार को भाषा से पहले रखा।  पियाजे का सिद्धांत उनकी पुस्तक लैंग्वेज एंड थॉट ऑफ़ चाइल्ड से लिया गया है।
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