मनोसामाजिक विकास का सिद्धांत (एरिक एरिक्सन)
मनोसामाजिक विकास के सिद्धांत के प्रतिपादक एरिक एरिकसन हैं इन्हें नव्यफ्रायडवादी माना जाता है। क्योंकि क्योंकि यह फ्रायड के विचारों को काफी हद तक समझते थे। लेकिन वह फ्रायड की एक बात से सहमत नहीं थे।
एरिक्सन का मानना है कि बालक का विकास उसके काम प्रवृत्ति का नहीं बल्कि उसकी सामाजिक अनुभूतियों का प्रभाव पड़ता है।
एरिक एरिक्सन द्वारा प्रतिपादित मनोसामाजिक सिद्धांत – महत्वपूर्ण बिंदु:-
- मनोसामाजिक विकास के सिद्धांत के प्रतिपादक एरिक एरिकसन हैं।
- एरिक एरिक्सन एक जर्मन-अमेरिकन मनोवैज्ञानिक हैं ।
- एरिक एरिकसन की पुस्तक का नाम childhood & Society है। इसका प्रकाशन 1963 में किया।
- इनकी दूसरी पुस्तक का नाम- Identity youth & Crisis है।
- एरिक्सन एक नव मनोविश्लेषक भी माने जाते हैं।
- मानव जीवन के विकास में सामाजिक तथा भावात्मक घटकों का विशेष योगदान है।
- विकास के हर चरण में द्वंद्व अथवा टकराव की स्थिति है और स्वीकृति तथा अस्वीकृति सकारात्मक तथा नकारात्मक परिणाम उत्पन्न करती है।
- विकास की इन अवस्थाओं में संबंधों तथा सामाजिक हस्तक्षेप ओं का विशेष रूप से हाथ होता है।
- कुछ वैज्ञानिकों ने इनके सिद्धांत को जीवन अवधि विकास का सिद्धांत भी कहा है।
- एरिक एरिकसन ने अपने इस मनोसमाजिक सिद्धांत (psychosocial theory) मैं पूरे जीवन अवधि को 8 चरणों में विभाजित किया है।
- पहचान का संकट (Identity of Crisis) इन्होंने ही बताया। इनकी दूसरी पुस्तक का नाम- Identity youth & Crisis है।
मनोवैज्ञानिक एरिक एरिकसन आपने सामाजिक मनोवैज्ञानिक सिद्धांत में मानव की पूरी जीवन अवधि को जीवन अवधि को 8 चरणों में विभाजित किया है –
विश्वास बनाम अविश्वास (Trust vs mistrust)
इसका समय जन्म से 18 माह (शैशवावस्था) है। इसमें बच्चों को अपने माता पिता को देखकर उचित स्नेहा मिलता है जो उनमें विश्वास का भाव विकसित करता है तथा जब माता-पिता के द्वारा या इसने नहीं मिलता है तो उनमें अविश्वास की भावना पैदा होती है तथा इससे मिलने वाली मनोसामाजिक शक्ति आशा का विकास नहीं होता अगर माता पिता के द्वारा या स्नेह मिलता है तो बच्चों में “आशा hope” की भावना उत्पन्न होती है।
स्वतंत्रता बनाम लज्जा हीनता (Autonomy vs same and doubt)
इसका समय 17 माह से 3 वर्ष (पूर्व बाल्यावस्था) तक होता है इस अवस्था में बालक भोजन करना कपड़े पहनना स्नान करना आदि काम स्वयं करना चाहता है। तथा दूसरी ओर माता पिता डांट देते हैं। जिससे वे लज्जा महसूस करते हैं। इस उम्र में माता पिता को बच्चों को यह काम स्वयं करने देना चाहिए जिससे उनमें मनोसामाजिक शक्ति ‘इच्छा will power’ का विकास होता है।
पहल बनाम अपराध बोध (Initiative vs Guilt)
इसका समय 3 वर्ष से 5 वर्ष (प्राक स्कूली वर्ष pre school) होता है इस अवस्था में माता पिता बच्चों को उनके जीवन के सभी क्षेत्रों में नए खोज करने की प्रेरणा देते हैं तथा वह स्वयं से इस की पहल करते हैं यह करने से उनमें मनोसामाजिक शक्ति उद्देश्य (Purpose) का विकास होता है।
परिश्रम बनाम हीनता (Industry vs Inferiority)
इसका समय 6 वर्ष से 12 वर्ष (उत्तरा बाल्यावस्था) हाय इसमें बच्चों को पहल के माध्यम से नई अनुभूतियां मिलती हैं तथा बच्चे उनके द्वारा प्राप्त किए गए ज्ञान को परिश्रम की संज्ञा दी गई है या कर लेने से उनमें मनोसामाजिक शक्ति सामर्थ्यता ( Competence) प्राप्त कर लेते हैं
पहचान बनाम भूमिका भ्रांति (Identity vs Role confusion)
यह एक किशोरावस्था (12-18 वर्ष) का समय होता है इसमें बालक का व्यक्ति को इन प्रश्नों का सामना करना पड़ता है कि वह कौन है किससे संबंधित है और उसका जीवन कहां जा रहा है किशोरों को बहुत सारी नई भूमिकाएं और वयस्क स्थितियों का सामना करना पड़ता है। जैसे – अभिवावकों को किशोरों की विभिन्न भूमिकाओं और एक ही भूमिका के विभिन्न भागों का पता लग सकता है जिनका वह जीवन में पालन कर सकता है। यदि इसके सकारात्मक रास्ते का मौका न मिले तब, पहचान भ्रांति उत्पन्न हो जाती है जिससे मनो सामाजिक शक्ति ‘कर्तव्य परायता’(Fidelity) का विकास नहीं होता अगर पहचान भ्रांति न उत्पन्न हो तो यह शक्ति का विकास होता है।
घनिष्ठता बनाम अलगाव (Intimecy vs Isolation)
इसका समय प्रारंभिक वयस्कावस्था या युवा अवस्था (18-35 वर्ष) होती है । इसमें अगर व्यक्ति दूसरों के साथ धनात्मक सम्बन्ध बना लेता है तो उसमें घनिष्ठता का भाव विकसित हो जाता है। यदि व्यक्ति दूसरों के साथ धनात्मक सम्बन्ध नहीं बना पाता तो उसमें अलगाव का भाव पैदा होता है। घनिष्ठत सम्बन्ध स्थापित करने पर उसमें प्यार (love) जैसा मनोसामाजिक शक्ति को प्राप्त कर लेता है।
उत्पादकता बनाम स्थिरता (generativity vs staganat)
इसका समय40 वर्ष से 65 वर्ष (मध्य वयस्कावस्था) होती है । इस अवस्था में व्यक्ति अगली पीढ़ी के लोगों के कल्याण तथा समाज के लिए जननात्मकता में उत्पादकता सम्मिलित करता है लेकिन जब व्यक्ति को जननात्मकता की चिंता उत्पन्न नहीं होती तो उसमें स्थिरता उत्पन्न हो जाती है। इसमें व्यक्ति में देखभाल care की भावना का विकास होता है।
अहमपूर्णता बनाम निराशा (Integrity vs Despair)
यह अवस्था बुढ़ापे में (65+ उम्र) उत्पन्न होती है। इस अवस्था में व्यक्ति अपने पहले समय को याद करता है कि उसने अपने जीवन में क्या क्या किया है अगर वह उन कार्यों से संतुष्ट है तो उसमें अहमपूर्णता का भाव विकसित होगा। अगर वह बुढ़ापे में यह सोच रहा है कि उसने यह कार्य नहीं किया यह वस्तु नहीं खरीदी तो उसमें निराश की भावना का विकास होगा। अगर उस व्यक्ति में अहम पूर्णता का विकास होगा तो उसमें मनोसामाजिक शक्ति विवेक (wisdom) का विकास होगा।
एरिक एरिक्सन के मनोसामाजिक सिद्धांत से बनने वाले प्रश्न
1. मनोसामाजिक सिद्धांत के प्रवर्तक कौन हैं?
Ans- एरिक एरिक्सन
2. एरिक एरिकसन आपने सामाजिक मनोवैज्ञानिक सिद्धांत में मानव की पूरी जीवन अवधि को जीवन अवधि को कितने चरणों में बांटा है ?
Ans- 8 चरणों में।
3. एरिकसन की पुस्तक का क्या नाम है?
Ans- childhood & Society
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