प्रजनन
प्रजनन सजीवों का लक्षण है। एक जीव अपने ही प्रकार के जीव को जन्म देना प्रजनन है। प्रजनन जीवन की एक स्वभाविक प्रक्रिया है। जन्तु हो या पौधे, प्रजनन की क्षमता रखते हैं। सभी जीव समय के साथ साथ वृद्धि कर अनन्तः मृत्यु को प्राप्त होते हैं। पौधों जन्तुओं को अपनी जाति का अस्तित्व बनाये रखने के लिए प्रजनन करना आवश्यक है। जीवों में प्रजनन न हो तो प्रत्येक जीव की जाति उसकी मृत्यु के साथ ही समाप्त हो जाएगी और एक ऐसा समय आयेगा जब पृथ्वी पर कोई जीव नहीं रह जायेगा। प्रजनन द्वारा ही नई जातियों का विकास सम्भव है अतः प्रजनन से ही जीवन में सततता सुनिश्चित है।
बिल्ली और उसके बच्चे |
विभिन्न विधियों से प्रजनन-
जीवधारी विभिन्न विधियों से प्रजनन करते हैं। इन विधियों को तीन भागों में बांट सकते हैं-
- वर्धी प्रजनन
- अलैंगिक प्रजनन
- लैंगिक प्रजनन
1. वर्धी प्रजनन(Bred breeding)-
यह प्राय पौधों में पाया जाता है। जब के वर्धी भाग जैसे जड़ , तना और पत्ती से नये पौधे का जन्म हो तो इसे वर्धी प्रजनन कहते हैं। ऐसे पौधे बिना बीज के भी उगाये जाते हैं। शकरकंद, डहेलिया, सतावर की जड़ों को जब मिट्टी में बोया जाता है तो उनसे नये पौधे उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार आलू , अदरक, गन्ने के पौधे में वर्धी प्रजनन तने क द्वारा होता है।
आलू के तने द्वारा वर्धी प्रजनन |
कुछ पौधों में पत्तियों द्वारा वर्धी प्रजनन होता है। उदाहरण के लिए अजूबा और विगोनिया में पत्तियों से नये पौधे उत्पन्न होते हैं पत्तियों के किनारे पर कलिकायें होती हैं जो नये पौधों को जन्म देती हैं। वर्धी प्रजनन से उत्पन्न पौधे जनक पौधे के समान होते हैं तथा उसके गुणों को बनाये रखते हैं। अधिक पैदावार तथा उपयोगी पौधों के गुणों को बनाये रखने के लिए वर्धी प्रजनन कराये जाते हैं।
अजूबे की पत्ती द्वारा वर्धी प्रजनन |
कृत्रिम विधियों द्वारा पौधों में वर्धी प्रजनन कराये जाते हैं। वर्धी प्रजनन की निम्न विधियां हैं-
- आरोपण
- दाब कलम लगाना
- कलम लगाना
- गूटी लगाना
2.अलैंगिक प्रजनन (Asexual reproduction)
इस विधि में नये जीव की उत्पत्ति एक ही जनक से होती है। जीव धारियों में अलैंगिक जनन निम्नलिखित विधियों से होता है-
- विखण्डन द्वारा
- मुकुलन विधि (बडिंग) द्वारा
- बाजाणु ( स्पोर ) द्वारा
- पुनर्जनन द्वारा
विखण्डन द्वारा (fragmentation)
इस विधि से प्रायः एक कोशिकीय जीव प्रजनन करतें हैं। जीव का पूरा शरीर दो भागों में बंट जाता है। इसमें पहले केन्द्रक का विभाजन होता है फिर कोशिका दो कोशिकाओं में बंट जाती है। विखण्डन द्वारा जीवाणु, यूग्लीना, अमीबा आदि सूक्ष्म जीव प्रजनन करतें हैं।
मुकुलन विधि
इस विधि में शरीर पर एक छोटा सा उभार बाहर की ओर निकलने लगता है जिसे मुकुल या बड कहते हैं। यह मुकुल धीरे धीरे बड़ा हो जाता है और जनक जीव से अलग हो जाता है। जैसे यीस्ट में । बहुकोशिकीय जन्तु जैसे स्पन्ज, मूंगा में भी मुकुल शरीर के साथ जुड़ा रहता है। हाइड्रा में भी मुकुलन द्वारा प्रजनन क्रिया होती है।
बीजाणु ( स्पोर) विधि द्वारा –
इसमें पौधें में अत्यन्त छोटी रचनाएं बनती हैं। इन्हें बीजाणु कहते हैं। यह बीजाणु प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जीवित रहते हैं। बीजाणु हवा के साथ नम स्थानों पर गिर जाते हैं जो अंकुरित होकर नये पौधे को जन्म देते हैं जैसे ब्रेड, चमड़े, अचार आदि पर फफूंद लगना तथा निरन्तर गीले स्थान पर काई जमना आदि। फफूंदी शैवाल, माॅस और फर्न में बीजाणु द्वारा जनन होता है।
राइजोपस में बीजाणु द्वारा प्रजनन |
पुनर्जनन द्वारा-
कुछ जन्तु जैसे – प्लेनेरिया, हाइड्रा, सितारा मछली, केंचुआ आदि अपने शरीर के कुछ भागों से पूरा बना लेने की क्षमता रखते हैं। शरीर के एक भाग से एक पूरे जीवधारी को उत्पन्न करने की क्रिया या कटे भाग के पुनः बन जाने की क्षमता को पुनर्जनन कहते हैं।
कुछ जन्तुओं में पुनर्जनन की क्षमता पूरे शरीर में न रह कर कुछ भागों में सीमित रहती है जैसे छिपकली की पूंछ कट जाने पर पुनः बन जाती है।
3. लैंगिक प्रजनन-
इस विधि में नये दो विभिन्न लिंगों वाले जीवधारियों से जीव की उत्पत्ति होती है। लैंगिक जनन करने वाले जीवों में विशेष अंग होते हैं, जिन्हें जनन अंग कहते हैं।
जन्तुओं में लैंगिक प्नजनन-
नर जनन अंग को वृषण एवं मादा जनन अंग को अण्डाशय कहते हैं। इन अंगों में युग्मक उत्पन्न होते हैं। वृषण में नर युग्मक (शुक्राणु ) बनते हैं और अण्डाशय में मादा युग्मक (अंडाणु) बनते हैं। शुक्राणु तथा अंडाणु के आपस में मिलने से युग्मनज ( जाइगोट) बनता है। इस क्रिया को निषेचन कहते हैं। इस युुग्मनज में विभाजन एवं विशिष्ट परिवर्तन होते हैं जिससे नया जीव वन जाता है। अधिकांश जीवों में नर या मादा जनन अंग अलग अलग पाये जाते हैं । ऐसे जीवों को एक लिंगी कहते हैं। जैसे- मछली, मेंढ़क, चिड़िया, तथा मनुष्य आदि । जब नर और मादा जनन अंग एक ही जन्तु में पाए जाते हैं तो इन्हें द्विलिंगी जन्तु कहते हैं। जैसे – केंचुआ।
निषेचन प्रक्रिया |
पौधों में लैंगिक प्नजनन-
पेड़ पौधों में लैंगिक प्नजनन- भी होता इसमें पुष्पी पौधों के जनन अंग पुष्प में ही पाए जाते हैं। पुष्प भी एकलिंगी होते हैं जैसे- लौकी, कद्दू आदि अथवा द्विलिंगी जैसे- सरसों, गुड़हल, मटर आदि । सामान्यतः एकलिंगी पुष्प कम मिलते हैं। पुष्प के नर जनन अंग को पुंकेसर और मादा जनन अंग को स्त्रीकेसर कहते हैं।
बीज का निर्माण किस से होता है
बीज का निर्माण बीजांड से होता है तथा फल का निर्माण अंडाशय से होता है। पुष्प में परागण तथा निषेचन क्रिया होती है।इस क्रिया के पश्चात पुष्प के बाह्यदल , दल तथा पुंकेसर आदि सूख कर गिर जाते हैं।
आपने देखा होगा कि खेत या बाग बगीचे में टमाटर, भिंडी, बैंगन के पुष्प को देखिए कि पुष्प खिलने के पश्चात कितने दिनों में पुष्प के मादा भाग अंडाशय से फल के रूप में परिवर्तित होता है। अण्डाशय की दीवार परिवर्तित हो कर फल बनाती है।फल में ही बीज का निर्माण होता है। क्या आपने मटर की फली को छीला है उसमें क्या दिखाई देता है? मटर में हम जो खाते हैं वह करता क्या है? वह बीज है।
क्या आप जानते हैं –
- रफ्लीशिया (Rafflesia) का पुष्प सबसे बड़ा तथा वूल्फिया (Wolfia) का पुष्प सबसे छोटा होता है।
- लोडोइसिया (Lodoicea) का बीज सबसे बड़ा तथा आर्किड का बीज सबसे छोटा होता है।
- फल अंडाशय का परिवर्तित रूप है। जो निषेचन के फलस्वरूप बनता है।
- सेव, नारियल, आदि असत्य या झूठा फल (False fruit) है।
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