सूक्ष्म शिक्षण क्या है, परिभाषा एवं चरण
➲ इसकी इसकी शुरुआत अमेरिका के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से 1960 के दशक में हुई।
➲ सूक्ष्म शिक्षण के जनक डीडब्ल्यूएनएल माने जाते हैं।
➲ भारत में सूक्ष्म शिक्षण लाने का श्रेय बीके फांसी हो जाता है।
➲ डी.डब्ल्यू. शिक्षण के पांच सिद्धांत बताए हैं
1. वास्तविक शिक्षण का सिद्धांत2. शिक्षण की जटिलताओं में कमी का सिद्धांत3. विशेष शिक्षण कौशलों के विकास का सिद्धांत4. सूक्ष्म शिक्षण द्वारा अभ्यास में कमी का सिद्धांत5. तुरंत प्रतिपुष्टि का सिद्धांत
सूक्ष्म शिक्षण की परिभाषा
एलन के अनुसार – ”सोच में शिक्षण एक संस्कृत शिक्षण प्रक्रिया है जो कम समय में छात्रों वाली कक्षा में संपन्न होती है”।
वी. के. पासी – “सूक्ष्म शिक्षण एक शिक्षक प्रशिक्षण तकनीक है जिसमें 1 शिक्षक किसी अवधारणा को कम समय लेकर कम आकार वाली कक्षा में विशेष शिक्षण कौशलों का प्रयोग करके सीखता है”।
सूक्ष्म शिक्षण के चरण (सोपान)
सूक्ष्म शिक्षण के 6 चरण माने गए हैं जो निम्नलिखित हैं-
- योजना निर्माण (प्रथम सोपान)
- शिक्षण
- प्रतिपुष्टि
- पुर्नयोजना
- पुर्नशिक्षण
- पुर्नप्रतिपुष्टि
सूक्ष्म शिक्षण से बनने वाले प्रमुख बिंदु
➲ स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में सूक्ष्म शिक्षण चक्र की अवधि 45 मिनट है।
➲ भारत में सूक्ष्म शिक्षण का प्रतिमान प्रोफेसर वीके पासी की सहायता से एनसीईआरटी ने तैयार किया।
➲ भारतीय सूक्ष्म शिक्षण प्रतिमान में 5 से 10 B.Ed बीटीसी के छात्र, शिक्षण चक्र की अवधि 36 मिनट तथा एक बार में एक शिक्षण कौशल का प्रयोग होता है, जबकि आदर्श पाठ की अवधि 6 मिनट है।
NCERT का सूक्ष्म शिक्षण चक्र
शिक्षण ——> 6 मिनट
प्रतिपुष्टि ——> 6 मिनट
पुर्नयोजना—->12 मिनट
पुर्नशिक्षण—-> 6 मिनट
पुर्नप्रतिपुष्टि–> 6 मिनट