अधिगम के वक्र, पठार तथा अधिगम स्थानांतरण

 

अधिगम के वक्र, पठार तथा अधिगम स्थानांतरण

अधिगम के वक्र/ढाल

अधिगम वक्र हम उसे कहते हैं जो सीखने के कम अधिक , शून्य आदि को प्रर्दशित करता है। अधिगम वक्र चार प्रकार के होते हैं ।
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1. सरल रेखीय वक्र (Straight Line Curve)
2. उन्नोदर/वर्धमान निष्पादन (Positive Curve)
3. ह्रास निष्पादन वक्र (Negative Curve)
4. मिश्रित/ S आकारीय वक्र ( Combined Curve)

सरल रेखीय वक्र (Straight Line Curve)

सीखने की क्रिया में जब सीखने की मात्रा समान होती है तो सरल रेखीय वक्र प्राप्त होता है। इस वक्र का आकार एक सीधी रेखा के समान होता है। अर्थात प्रत्येक प्रयास में सीखने की मात्रा समान होती है।
विशेष बिन्दु
  1. इस प्रकार का वक्र बहुत कम पाया जाता है।
  2. लैकमैन ने 1961 में चूहों के अध्ययन में इस तरह का वक्र पाया।

उन्नोदर/वर्धमान निष्पादन (Positive Curve)

इस प्रकार के वक्र में प्रारम्भ में सीखने की गति धीमी किन्तु बाद में तीव्र हो जाती है। फलस्वरूप वक्र रेखा बहुत तेजी से ऊपर की ओर उठती है।
विशेष बिन्दु
  1. इस प्रकार का वक्र कठिन विषय वस्तु को सीखने पर बनता है।
  2. इस प्रकार के वक्र की शुरुआत में अधिक प्रयास के बाबजूद सीखने की मात्रा कम होती है। जब कि बाद में कम प्रयास से ही सीखने की मात्रा बढ़ती चली जाती है।

ह्रास निष्पादन वक्र (Negative Curve)

इस प्रकार के वक्र में प्रारम्भ में सीखने की मात्रा तीव्र परन्तु बाद में सीखने की मात्रा में कमी आती है।
विशेष बिन्दु
  1. यह सबसे लोकप्रिय शिक्षण वक्र है।

मिश्रित/ S आकारीय वक्र ( Combined Curve)

इस प्रकार के वक्र में सीखने की गति आरंभ में धीमी और बाद में तीव्र तथा अन्त में धीमी हो जाती है। यह धनात्मक तथा ऋणात्मक वक्रो का मिश्रित रूप है।
विशेष बिन्दु
  1. प्रारम्भ में इस प्रकार के वक्र का स्वरूप धनात्मक वक्र की तरह तथा बाद में ऋणात्मक वक्र की तरह हो जाता है।
  2. अगर किसी को नया विषय वस्तु सीखने को दिया जाता है, जिससे वह पूर्व परिचित नहीं हैं तथा सम्पूर्ण विषय वस्तु समान रूप से कठिन है तो बनने वाला वक्र S आकारीय होगा।

सीखने के पठार (Plateaus of Learning)

जब सीखने की गति न तो तेज होती है और न ही धीमी होती है । अर्थात सीखने की गति में कोई उतार चढ़ाव नहीं होता तो वक्र रेखा एक पड़ी रेखा के रूप में चलने लगती है। शिक्षण वक्र में इस हिस्से को सीखने का पठार कहते हैं।

राॅस के अनुसार – ये उस अवधि को व्यक्त करते हैं जब सीखने की क्रिया में कोई उन्नति नहीं होती है।

 मुख्य बिंदु 
  1. सीखने का पठार आना एक प्रकार से स्वाभाविक है।
  2. एक वक्र में एक से अधिक पठार हो सकते हैं।

अधिगम स्थानांतरण

एक स्थिति में सीखा हुआ ज्ञान किसी दूसरी स्थिती में प्रयोग किया जाता है। उसे अधिगम स्थानांतरण कहलाता है।

अधिगम स्थानांतरण के प्रकार

1. सकारात्मक स्थानांतरण
2. नकारात्मक स्थानांतरण
3. शून्य स्थानांतरण
सकारात्मक स्थानांतरण — धनात्मक/अनुकूल जब एक स्थिति में सीखा हुआ ज्ञान किसी दूसरी स्थिति में सहायक होता है।
उदाहरण :-
  • साइकिल चलाने के बाद स्कूटर आसानी से सीखा जा सकता है।
  • संस्कृत भाषा का ज्ञान हिंदी विषय में सहायक

नकारात्मक स्थानांतरण–  एक स्थिति में सीखा हुआ ज्ञान किसी दूसरी स्थिति में बाधा उत्पन्न करता हो उसे नकारात्मक स्थानान्तरण कहते हैं।

उदाहरण :-
  • अमेरिका क ड्राइवर को भारत में ड्राइविंग करने में बाधा उत्पन्न होती है।
  • कला विषय के छात्र को गणित विषय पढ़ने में बाधा आयेगी।
शून्य स्थानान्तरण — जब एक स्थित में सीखा हुआ ज्ञान दूसरी स्थिति में न तो सहायक हो न  बाधा उत्पन्न करता है। 
उदाहरण :-
  • कबीर के दोहे याद कर लेने पर भी रहीम के दोहे याद करने में उतना समय लगेगा।पं 
See also  CTET/UPTET EXAM: ध्यान एवं रुचि notes pdf

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