वन
वनों का आशय उन क्षेत्रों से है जो वन अधिनियम में वर्णित विभिन्न श्रेणियों में से, किसी एक श्रेणी के अन्र्तगत घोषित कर दिए गए हैं।पर्यावरण की दृष्टि से वन पेड़-पौधे और वनस्पति से आच्छादित वे क्षेत्र हैं । जो वायुमंडल की कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और प्रकाश संश्लेषण की संक्रिया से वापस आक्सीजन देकर वायु मंडल को संतुलित रखते हैं। भारत में वनों के प्रकार मुख्यत पांच प्रकार के होते हैं।
वनों के महत्व Important of Forests
वनों का महत्व निम्नलिखित है-
- ये पानी और मिट्टी जैसे महत्वपूर्ण संसाधनों की सुरक्षा और संरक्षण करते हैं। भूमि क्षरण रोकते हैं, भू-सतही जल को रोककर एवं उन्हें स्वच्छ कर भूमिगत जल में भेजते हैं तथा जमीन की नमी को बनाए रखते हैं।
- ये नदियों के प्रवाह को नियमित करते हैं, उनके प्रदूषण को नियंत्रित करते हैं, मिट्टी को बहकर जाने से रोकते हैं , बाढ़ रोकते हैं या कम करते हैं।
- वन अच्छादित क्षेत्र वायुमंडल की आद्रता बनाए रखते हैं, जिससे अधिक वर्षा की संभावना रहती है
- वनों से औषधियां प्राप्त होता हैं , जिनसे अनेक अस्वध लोगों का उपचार सम्भव है।
- जल चक्र तथा वायु चक्र में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
- ये आक्सीजन (प्राण वायु) के संचित कोष स्थल हैं जो कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित कर आक्सीजन देते हैं।
- वनों की उर्वरता को बढ़ाते हैं।
- उद्योगों से होने वाले प्रदूषण को रोकते हैं । घनी वृक्षावली कई प्रकार की विषैली गैसों का अवशोषण करती है । वृक्ष ध्वनि प्रदूषण को कम करते हैं।
वनों से लाभ
वनों से हम अनेक प्रकार से लाभ लेते हैं । तथा वन मृदा अपरदन रोकने में सहायक होते हैं। वनों से हम दो प्रकार से लाभ लेते हैं एक तो प्रत्यक्ष दूसरा अप्रत्यक्ष रूप से लाभ लेते हैं।
वनों से प्रत्यक्ष लाभ
- वनों से हम उनके फलों को प्राप्त करना ।
- वनों से हम लकड़ी प्राप्त करते हैं।
- इनकी लकड़ी से फर्नीचर बनाकर अत्यधिक लाभ लेते हैं।
- वनों के कुछ वृक्षों के पत्तों को पशुओं के चारे के लिए प्राप्त करते हैं।
- गर्मियों में हम इसकी छाया में आराम करते हैं।
- कुछ वृक्ष औषधीय गुण वाले होते हैं।
- ईंधन के रूप में।
वनों से अप्रत्यक्ष लाभ
- मृदा अपरदन को रोकने में सहायक।
- वृक्षों के सूखे पत्तों से ह्यूमस प्राप्त होता है।
- जीवों का संरक्षण करना।
- पक्षियों का आश्रय स्थल।
- आक्सीजन प्रदान करना।
- कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण करना।
भारत की राष्ट्रीय वन नीति
भारतीय वनों के प्रबंधन के लिए सबसे पहली राष्ट्रीय वन नीति सन् 1884 में बनाई गई , जिसमें वनों का संरक्षण तथा आरक्षित और सुरक्षित वनों के निर्माण की ठोस व्यवस्था की। इस नीति के अनुसार निम्नलिखित हैं-
- पहाड़ी ढलानों पर के वनों की सुरक्षा होनी चाहिए।
- वनों का प्रबन्धन पूर्णतया व्यवसायिक होनी चाहिए।
- जहां पर भी कृषि योग्य भूमि वन क्षेत्र में आती हो उसे कृषि – कार्य हेतु उपयोग में लानी चाहिए ।
1952 ई. में दूसरी राष्ट्रीय वन नीति घोषित हुई । इसमें यह प्ररावधान था कि भू-भाग भााग के 33.3% में वन क्षेत्र होने चाहिए।
वन (संरक्षण ) अधिनियम, 1980
- वन भूमि के अंधाधुंध अनारक्षण और उपयोग को रोकने के लिए 1980 ई. में वन (संरक्षण) अधिनियम किया गया ।इस अधिनियम के अंतर्गत किसी आरक्षित वन को आरक्षित घोषित करने या वन भूमि को गैर वन प्रयोजन के लिए उपयोग में लाने के लिए केन्द्रीय सरकार की पूर्व अनुमति आवश्यक होगी।
- प्रथम भारतीय वन अधिनियम सन् 1927 में बना, जिसके अन्र्तगत राज्य सरकारों द्वारा वन प्रबंधन किया जाता रहा है। लेकिन इसके बाद 1952 और फिर 1988 की भारतीय वन नीति घोषणा के बाद इसमें कुछ सुधार/संशोधन की आवश्यकता है । यह गतिविधि प्रगति पर है।
- नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी (NRSA) के प्रतिवेदन के अनुसार प्रति बर्ष वनों की कटाई के कारण वन क्षेत्र में वनों का प्रतिशत निरन्तर कम हो रहा है और अच्छे वनों का प्रतिशत 15-16% के लगभग है इस प्रकार विरल वन क्षेत्र में वनों का प्रतिशत लगभग 9-10% है। कुल मिलाकर वन क्षेत्र में वनों की स्थिति 11-12% के मध्य है।
वन संरक्षण के लिए केन्द्र सरकार द्वारा उपाय
Efforts of Central Government for Foresrs Conservation
वन संरक्षण के लिए केन्द्र सरकार द्वारा किये जाने वाले उपाय निम्नलिखित हैं–
- ईंधन के वैकल्पिक स्रोतों का उपाय
- जैविक हस्तक्षेप से वनों की सुरक्षा
- वन अग्नि नियन्त्रण योजना : यह स्कीम 1992-93 से प्रारंभ की गई है।
- प्राकृतिक साधनों का संरक्षण
- मरूस्थलीय को रोकना
- संयुक्त वन प्रबंधन
रेड डाटा बुक The Red Data Book
प्राकृतिक संरक्षण की अन्तर्राष्ट्रीय संस्था (IUCN) ने अपने अधीनस्थ सरवाइवल सर्विस कमीशन संस्थान के द्वारा एक विशेष लाल किताब (Red Book) का प्रकाशन किया है। इस बुक में निम्नलिखित जानकारियां प्रकाशित की गई-
- लुप्त हो रही जीव प्रजातियां
- उनके आश्रय स्थल
- वर्तमान में उपलब्ध जीवों की संख्या
- लुप्त हो रहे अथवा कम हो रहे जीवों के कारण
अब तक पांच पुस्तकें अन्तर्राष्ट्रीय रेड बुक प्रकाशित हो चुकी है जिसकी प्रथम पुस्तक का प्रकाशन 1 जनवरी, 1972 को हुआ था।इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
प्रथम पुस्तक
इसमें स्तनधारी वर्ग की 236 प्रजातियां तथा 292 उप- प्रजातियो का विवरण है।
द्वितीय पुस्तक
इसमें पक्षियों की 287 प्रजातियां तथा 341 उप प्रजातियों का विवरण है।
तृतीय पुस्तक
इसमें उभयचरों की 36 प्रजातियों एवं उप 119 उप प्रजातियों का विवरण है।
चतुर्थ पुस्तक
इसमें मछलियों की दुर्लभ एवं अप्राप्य प्रजातियां एवं उप प्रजातियों का विवरण है।
पंचम पुस्तक
इसमें पौधे वनस्पतियों की दुर्लभ एवं अप्राप्य प्रजातियां एवं उप प्रजातियों का विवरण है।
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